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यह शताब्दी : तीन दृश्य

ye shatabdi ha teen drishya

एन. सुकुमारन

एन. सुकुमारन

यह शताब्दी : तीन दृश्य

एन. सुकुमारन

और अधिकएन. सुकुमारन

    दृश्य : एक

    मनुष्यों की तरह कटे हुए थे पेड़

    उनके घावों से अभी भी हो रहा था रक्तस्राव

    कल इसी रास्ते पर दिखा विरल सूर्योदय

    पर्वत शिखर पर

    सूर्य के मुख पर सृष्टि के आदिम की मुस्कान

    पक्षियों की चहचहाहट

    छायाओं की करुणा

    पत्तों के समुद्रों की निरंतर लहरें

    हवा के पार्श्व में फूलों के उद्घोष

    प्रकृति : मनुष्य का पहला कुतूहल

    आज यह वन मरुस्थल-सा जलता है

    कटे वृक्षों के बीच

    धूप हुआँ-हुआँ कर रही है

    वृक्षों के घाव में मौन निरपराध का

    सरकारी काग़ज़ में चांडाल का दर्प

    वृक्षों, मनुष्यों के बीच

    चमक कुल्हाड़ी की

    वीरान इस धरती पर

    फड़फड़ाती है छटपटाहट अपने डैने।

    दृश्य : दो

    एक रिपोर्ट :

    हमारी यह शताब्दी

    बेहोश पड़ी है ऑपरेशन की मेज़ पर

    उसे तकलीफ़ है साँस की

    जिगर में ख़राबी

    हम इंतज़ार में खड़े हैं शवगृह के आसपास।

    दृश्य : तीन

    मृत्यु के हाथों से गिरी और टूट गई रात उस शहर की

    फैल गई शवों की दुर्गंध

    सर्वत्र

    गिरजाघरों से आते आख़िरी घंटे ने

    ढाँप लिया दीन-हीन क्रंदन

    पीढ़े से हिलने वाला ईश्वर—मूँद ली अपनी खुली आँखें

    वक़्त से पहले लौटे नीड़ों में पक्षी मर गए

    जड़ हो गए जानवर

    खड़े-खड़े

    मर गई निःस्पंद होकर वनस्पतियाँ

    एक क़दम और बढ़ गया विज्ञान

    लाशें घसीट कर

    हवा के पहियों पर सवार

    मृत्यु ने खदेड़ा

    पैरों में प्राण लिए

    भाग रहे लोग, आया प्रलय जैसे

    उस मरघट में हुई सुबह

    विषैले मेघों से

    सूर्य के केश हो गए सफ़ेद

    शवों के ढेर में

    आग की निरपराधिता

    अख़बार की सुर्ख़ियों में

    एक और घटना

    सरकारी काग़ज़ में चांडाल का दर्प

    मृत्यु का अदृश्य जाल सब जगह फैल रहा

    खोने का आर्तनाद खो रहा दिशाओं में

    लकड़ियों की तरह जमा कर दिए गए थे मनुष्य।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 84)
    • संपादक : गिरधर राठी
    • रचनाकार : कवि के साथ एन. बालसुब्रह्मण्यन एवं विमल कुमार
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1994

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