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यह सभ्यता

ye sabhyata

संजय कुंदन

संजय कुंदन

यह सभ्यता

संजय कुंदन

महामारी से नष्ट नहीं होगी यह सभ्यता

महायुद्धों से भी नहीं

यह नष्ट होगी अज्ञान के भार से

अज्ञान इतना ताक़तवर हो गया था

कि अज्ञानी दिखना फ़ैशन ही नहीं

जीने की ज़रूरी शर्त बन गया था

वैज्ञानिक अब बहुत कम वैज्ञानिक

दिखना चाहते थे

अर्थशास्त्री बहुत कम अर्थशास्त्री

दिखना चाहते थे

इतिहासकार बहुत कम इतिहासकार

कई पत्रकार डरे रहते थे

कि उन्हें बस पत्रकार ही

समझ लिया जाए

वे सब मसख़रे दिखना चाहते थे

हर आदमी आईने के सामने खड़ा

अपने भीतर एक मसख़रा

खोज रहा था

इस कोशिश में एक आदमी

अपने दोस्तों के ही नाम भूल गया

एक को तो अपने गाँव का ही नाम याद नहीं रहा

बुद्धि और विवेक को ख़तरनाक

जीवाणुओं और विषाणुओं की तरह

देखा जाता था

जो भयानक बीमारियाँ पैदा कर सकते थे

इसलिए गंभीर लोगों को देखते ही

नाक पर रूमाल रख लेने का चलन था

एक दिन अज्ञान सिर के ऊपर बहने लगेगा

तब उबरने की कोई तकनीक, कोई तरीक़ा किसी

को याद नहीं आएगा

तब भी मसख़रेपन से बाज़ नहीं आएँगे कुछ लोग

एक विद्रूप हास्य गूँजेगा

फिर अंतहीन सन्नाटा छा जाएगा।

स्रोत :
  • रचनाकार : संजय कुंदन
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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