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यात्रा-वृत्तांत

yatra writtant

कृष्णमोहन झा

कृष्णमोहन झा

यात्रा-वृत्तांत

कृष्णमोहन झा

और अधिककृष्णमोहन झा

    आते हुए… छूटते… जाते हुए सारे दृश्य

    और सभी ध्वनियाँ

    परस्पर गुँथकर

    किसी कोलाज की तरह खिड़की पर जम गए हैं

    और डब्बे में झूलती पिछली रात के सपने में

    हवा में हहराते गाछ के नीचे

    उस गर्भवती के लाल-टेस बच्चे को लेकर अब भी चल रहा हूँ मैं

    जिसकी ऊँघती देह

    एक नाव बनकर रेल में हिल रही है…

    एक परिचित अजनबी स्त्री के ख़ून से उछलकर

    फूल की एक बूँद

    मेरी आत्मा में धूप की तरह उतर रही है धीरे-धीरे

    जिसकी प्रभा में झिलमिलाता मेरी यात्रा का वैभव

    पहली बार

    इतना अधूरा और इतना पूरा हो रहा है

    कि उसे कह पाने के लिए मैं छ्टपटाता हूँ

    ख़ुद को जोतता-कोड़ता हूँ

    एक-एक सिरा अलगाता हूँ

    और तब अपनी नश्वरता में यह भेद पाता हूँ

    कि मैं आदमी नहीं

    मेरे भीतर जो एक बच्चा बैठा हुआ है

    उसकी उमगती हुई गेंद हूँ मैं

    एक-एक साँस उछलकर जहाँ तक जिस तरह पहुँच पाता हूँ

    वही है मेरी अधिकतम भाषा…

    मेरी इस भाषा के आसमान में उगा है

    एक तारा अभी

    इस भाषा की टहनी को छूती हुई अभी एक बयार गुज़री है

    इस भाषा की देह से अभी उठी है वन-तुलसी की गंध

    इस भाषा के रक्त से

    अभी–अभी एक नन्हे हाथ की पुकार उभरी है

    जिन्हें ठीक से सहने

    और यथासंभव कहने के लिए मैं

    डिब्बे में ऊँघ रहे लोगों को बार-बार जगाने की कोशिश करता हूँ

    लेकिन कोई हिलता तक नहीं

    असंख्य गाँवों अनगिनत नदियों अखंड दृश्यों को छोड़ती

    फफकती गाड़ी में

    सिर्फ़ छूटी हुई यात्राएँ हिलती हैं…

    स्रोत :
    • रचनाकार : कृष्णमोहन झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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