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यातायात का हाथ खड़ा है

yatayat ka hath khaDa hai

प्रकाश चंद्रायन

प्रकाश चंद्रायन

यातायात का हाथ खड़ा है

प्रकाश चंद्रायन

और अधिकप्रकाश चंद्रायन

    दिशाएँ अनेक हैं यातायात भी कम नहीं,

    पगडंडियों से महामार्ग तक जिससे चाहें आएँ-जाएँ।

    यदि दिशाभूल हो भटकाव हो रास्ता बंद हो मंज़िल पाएँ,

    तब क्यों नहीं गतिशीलताओं पर निगाह डाल ख़ुद से बतियाएँ!

    देखें! यह दक्षिण मार्ग है,

    जो दक्षिणतर-दक्षिणतम होते-होते धुर दक्षिण होता जाता है।

    और देखें! यह मध्य-दक्षिण पथ है,

    जो मध्य-मध्य, दक्षिण-दक्षिण होते-होते दक्षिण-मध्य में रुक जाता है।

    यह भी देखें! यह मध्य महामार्ग है,

    जो मध्य-निम्न, उच्च-मध्य होते-होते मध्य-मध्य रहने का आदी है।

    और यह भी देखें! यह मध्य-वाम राह है,

    जो वाम-मध्य, मध्य-वाम होते-होते दोराहे पर सोचता रहता है।

    देखना हो तो देखें! यह उत्तर-वाम रास्ता है,

    जो निम्न-वाम, मध्य-वाम होते-होते उत्तर-वाम में उत्तर खोजता है।

    इच्छाशक्ति हो तो इसे देखें! यह निम्न सड़क है,

    जो धूलभरी, कीचड़सनी, पथरीली, कंटीली, खंदक-खाई ही रहती है।

    अब देखें और सोचें!

    किधर असुविधा है, कहाँ दुविधा है, कितनी सुविधा है?

    विविधा है तो उसमें कैसी-कैसी रचनात्मक विधा है

    और विधाओं में कितनी प्रतिशत बच रही विविधता है?

    सोचें और तय करें

    इनमें ध्रुवांत तो है महासीमांत कहाँ है?

    तत्सम छोड़ तद्भव-देशज में सोचें,

    इनमें हाशियास्तान कहाँ है?

    वहीं पर चट्टानी चुप्पी है खंदकी ख़ामोशी है,

    यातायात का हाथ खड़ा है दिशाएँ दिशाहारा हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रकाश चंद्रायन
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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