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श्याम परमार

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श्याम परमार

और अधिकश्याम परमार

    हज़ारों किलोमीटर ध्वनियों के क़ब्रगाह :

    मरी हुई इच्छाओं के वृत्त

    कंधे से कंधा लगाए

    ख़ामोश

    बंद आवाज़ों से कहीं हथगोले छूटे x x x

    (इसलिए विचारों के मिज़इलस पर पहरे हैं)

    x x x मगर मशीन की आँतों ने

    अभी आदमी को खाना शुरू नहीं किया

    ...बहुत आदिम है यह निर्भरता

    आवाज़ तो क्या, पत्ता भी हिलने के लिए

    हवा का इंतज़ार करता है

    और कमबख़्त आदमी, एक हुक में लटका हुआ

    ख़ुद को हवाओं से आगे मानता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विजप (पृष्ठ 112)
    • रचनाकार : श्याम परमार
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 1967

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