वृक्षों को मालूम है सबकुछ
wrikshon ko malum hai sabkuchh
वृक्षों को मालूम है सबकुछ
कि कब बरसात भिगोएगी,
कब धूप रोकेगी,
कब पवन पुकारेगा,
मुझे जैसे—
तुम्हारी राह देखते हुए
मसके हुए पूरब से यहाँ
दूसरी ओर घूमते-मुड़ते
दीर्घ फैले पश्चिम के क्षितिज तक।
और हठीली
—(जड़ों में जड़ें उलझा कर)—
भिड़ी हुई कपूर-सी रात्रि में
मेरे तन में लाख-लाख रक्त-पुष्प
तेरे ही लिए
तेरे ही—
—लिए
वृक्षों को मालूम है सबकुछ़।
- पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 87)
- रचनाकार : पु. शि. रेगे
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
- संस्करण : 1965
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