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धरती पर जीवन सोया था

dharti par jiwan soya tha

रामकुमार तिवारी

रामकुमार तिवारी

धरती पर जीवन सोया था

रामकुमार तिवारी

इच्छाएँ

बाल्टी के चाँद की तरह

कुएँ में छलक जाती हैं

आँखों में रह जाते सूने निःस्पृह तल

बाहर सड़कों पर

चली हुई दूरियाँ पड़ी हैं

जिन पर चलता हुआ

अपनी परछाईं में लौटता हूँ चुपचाप

शाम आकाश में

सूखे पेड़ की आकृति

टूटी जड़ों की मौन व्यथा लिए

धीरे-धीरे दिशाओं में घुलती है

अँधेरा

मनुष्य का अनसुना है

घिर आता है बेआवाज़

इस समय दुख पास-पास

और तारे ऊपर हैं

प्रवचनों से दूर

मृत्यु-शैय्या पर पड़े

वृद्ध के कुत्ते के साथ जीवन रो लेता

भीतर कहीं मृत्यु हो जाती

बाहर इतना जलसा है कि

कुछ भी कहना असभ्यता है

कभी रात के किसी पहर

पहाड़ के ऊपर से देखा था

धरती पर जीवन सोया था

चाँदनी ओढ़ने की तरह पड़ी थी

स्रोत :
  • पुस्तक : अपनी परछाईं में लौटता हूँ चुपचाप (पृष्ठ 32)
  • रचनाकार : रामकुमार तिवारी
  • प्रकाशन : आईसेक्ट पब्लिकेशन
  • संस्करण : 2020

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