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वह हामिद था...

wo hamid tha. . .

कौशल किशोर

कौशल किशोर

वह हामिद था...

कौशल किशोर

और अधिककौशल किशोर

    कई बार हम देखते हैं

    उम्र छोटी होती है

    पर उसके काम बड़े होते हैं

    जैसे ‘ईदगाह’ का हामिद

    वह था तो बच्चा

    पर उसकी संवेदनाएँ बड़ी थीं

    वह गाँव से इतनी दूर आया था मेले में

    रंग-बिरंगे खिलौने उसे रिझाते

    अपनी ओर खींचते

    उसका बाल-मन उन पर अटक जाता

    अंदर वेगवती नदी बहने लगती

    पर जैसे ही उसकी भोली नज़र चिमटे पर पड़ी

    मन के सारे तरल भाव वाष्प बन उड़ने लगे

    उसकी आँखें चुंबक-सी चिमटे से जा चिपकी

    उसे याद आई दादी

    उनका रोटी बनाना,

    उसकी सारी क्रिया

    जैसे अँगीठी से तवा को उतारना

    आग में रोटी को सेंकना

    फिर तवा को अँगीठी पर चढ़ाना

    इस क्रिया को बार-बार दुहराना

    और यह सब करते

    हाथ की अँगुलियों का जल जाना

    दादी का तड़प उठना

    सारे दृश्य उसके सामने सजीव हो उठे

    वह लौट रहा था मेले से

    गाँव की ओर

    ख़ुश-ख़ुश

    उछलता-कूदता,

    हँसता-खिलखिलाता

    चिमटे को तलवार की तरह नचाता

    वह बना लेता उसे कभी हॉकी स्टिक

    तो कभी बल्ला

    वह रख लेता कंधे पर गदा की तरह

    उसका बचपन लौट आया था उसके अंदर

    अंग-अंग से फूट रही थी मस्ती

    बेख़ौफ़ बाल-हँसी

    वह हामिद था

    और यही उसका अपराध था

    बाबरी से दादरी तक

    जिन्होंने रौंदी हैं इस धरती को

    जो नरसंहार के इस खेल का

    कर रहे हैं विस्तार

    उन्हीं की अदालत में मुक़दमा पेश था

    प्रेमचंद भी उनके कठघरे में थे

    उनसे भी सवाल था

    कि क्यों नहीं उन्हें कर दिया जाए

    साहित्य से बेदखल?

    उनके ख़िलाफ़ भी गंभीर आरोप थे

    कि उन्होंने क्यों लिखी कहानी ‘ईदगाह’

    लिखना ही था तो वे लिखते कथा अयोध्या की

    राजा रामचंद्र की विजय गाथा लिखते

    हामिद गुनाहगार था

    हामिद ने मेले से चिमटा चुराया था

    हामिद चोर था

    हामिद के ख़िलाफ़ ख़ुफ़िया रिपोर्ट थी

    हामिद के कश्मीर से कनेक्शन थे

    हामिद पत्थरबाजों में देखा गया था

    हामिद के तार विदेशों से जुड़े हैं

    हामिद देश के लिए ख़तरा है

    हामिद को पेड़ बनने दिया जाए

    वे ही पेशकार थे

    वे ही हाकिम हुक्काम थे

    वे ही वकील थे

    वे ही मुनसिफ़ थे

    वे ही न्यायधीश थे

    उन्हीं की अदालत थी

    और हामिद के साथ जो हुआ

    उसे सारे देश ने देखा

    कि जिस चिमटे को

    उसने बड़े प्रेम से ख़रीदा था

    और जो इसी का प्रतीक था

    उसे ही उतार दिया गया उसके जिस्म में

    जहाँ बेख़ौफ़ बाल-हँसी थी

    वहाँ ठहाकों की गूँज थी

    हामिद मारा गया

    नहीं, नहीं, हामिद नहीं मारा गया

    मारी गई संवेदनाएँ

    हत्या हुई भाव-विचार की

    जो हमें हामिद से जोड़ती हैं

    जो हमें आपस में जोड़ती हैं

    जो हमें इंसान बनाती हैं

    जो हमें हिंदुस्तान बनाती हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कौशल किशोर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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