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विलंबित

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व्योमेश शुक्ल

व्योमेश शुक्ल

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व्योमेश शुक्ल

और अधिकव्योमेश शुक्ल

    हर काम में देर हो जाती थी

    बच्चे का स्कूल दस बजे से है तो आप सवा दस बजे पहुँचते हैं। कभी साढ़े दस बजे। कभी साढ़े दस के बाद। ट्रैफ़िक जाम में नौ बजे फँसना चाहिए तो अक्सर साढ़े नौ पर फँसते हैं। ट्रैफ़िक जाम की वजह से होने वाली देरी भी देर से शुरू होकर देर में ख़त्म होती है। दोपहर और रात का खाना अपने तय समय से एक, दो, ढाई, तीन घंटे और यों ज़्यादा से ज़्यादा देर से खाते हैं आप। सोते देर से हैं जागते देर से हैं। रेलगाड़ियाँ सिर्फ़ वही पकड़ पाते हैं जो लेट चल रही हों। देर से चलने वाली रेलगाड़ी देर से स्टेशन पहुँचने पर बिल्कुल सामने खड़ी मिलती हैं और आपको बिठाकर देर से कहीं पहुँचा देती है

    यह सिलसिला दूर तक जाता है

    होते-होते यह यह हुआ कि एक आदमी ठीक चौबीस घंटे विलंबित हो गया। ऐसे में, वह अगर पच्चीस तारीख़ की सुबह ठीक दस बजे बच्चे को लेकर स्कूल पहुँचा तो प्रिंसिपल साहिबा उसकी समयबद्धता पर हैरत में पड़ गईं। जबकि यह तो उस आदमी का दिल ही जानता है कि वह चौबीस तारीख़ के लिए चलकर चौबीस घंटे देर से स्कूल पहुँचा है। जिसे दुनिया पच्चीस तारीख़ मान रही है, वह उसके लिए चौबीस तारीख़ का ही चौबीस घंटे विलंबित संस्करण है। जिस पच्चीस जून को उसके परिजन उसका जन्मदिन मनाते थे वह उसके लिए चौबीस घंटे बाद छब्बीस जून को आता था, यानी उसके दो जन्मदिन, एक बाक़ी दुनिया के लिए, एक ख़ुद के लिए। उसका देश अब उसके लिए सोलह अगस्त को आज़ाद होता था और उसका पड़ोसी देश पंद्रह अगस्त को। राष्ट्रपिता का जन्मदिवस तीन अक्टूबर को अकेले मना लेता है वह। उसका नया साल दो जनवरी को शुरू होता है और एक जनवरी उसके लिए एक साल पुरानी तारीख़ है। किसी कार्यक्रम में शामिल होने का निमंत्रण पाकर वह अपनी चेतना में उस कार्यक्रम का एक प्रतिकार्यक्रम तैयार कर लेता है। जैसे, अगर कार्यक्रम नौ तारीख़ को रखा गया है तो उसे अपनी आठ तारीख़ को चौबीस घंटे देर से वहाँ पहुँचना होगा। अपने अंत:कक्ष में अपने पैमानों पर घटित होने वाला एक कैलेंडर उसने टाँग रखा है जिसके ऊपर उसने दुनिया के पैमानों पर चलने वाला एक दुनियादार कैलेंडर टाँग दिया है, नहीं तो उसकी बीवी या दूसरे लोग उस विलंबित कैलेंडर को एक व्यर्थ पोथा मानकर फाड़कर फेंक देंगे

    अपनी डायरी में उसने नोट कर लिया है कि आसन्न लोकसभा चुनाव में उसे एक दिन पहले ही मतदान करने जाना है। फ़िलहाल एक अकेली जगह पर खड़ा वह मुस्कुराता हुआ सोच रहा है कि विधाता ने उसके मरने की जो भी तारीख़ तय कर रखी हो, विधाता के कैलेंडर से तो वह उसके चौबीस घंटे बाद ही मरेगा

    स्रोत :
    • पुस्तक : फिर भी कुछ लोग (पृष्ठ 98)
    • रचनाकार : व्योमेश शुक्ल
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2009

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