बेशुमार हैं वजहें
नींद न आने की!
मैं दासी-पुत्र
जन्मा दलित कोख से
क्या क्या कारण
गिनवाऊँ अनिद्रा के!
तुम अपने आपको राजा कहते हो
सत्ताधारी से
अधिक अनाचारी
धूर्त, बहुरूपिया और कौन होता है!
तुम उम्र भर ख़ून चूसते रहे
ग़रीब, लाचारों का
मरे हुए भाई का हक़ मार लेने पर
आमादा
तुमने क्या क्या नहीं किया
अंधे राजा!
तुम्हारी आँखों के पीछे
ख़ूंख़्वार अंधकार है।
नींद? दरअसल नींद
मरना आने के पहले का अभ्यास है।
रोज़ रोज़ पढ़ती है दुनिया
यही एक पाठ
तो भी नहीं जान पाती
रहस्य
इस ककहरे का।
तुम तृष्णा के जाल में
फँसे मच्छर
तुम्हें नींद क्यों आए कैसे!
असल में नींद मृत्यु की सहेली है
वंश के वृक्ष पर छैली बेल
नींद का निरुक्त बड़ा बेढब है।
पेट में दहकती हो आग भूख की
चोरी की हो
हड़प ली किसी की संपदा
तब कैसे नींद आए
नींद के ग़ुलाम सिर्फ़ साधारण
जन ही नहीं
पशु, पेड़, चिड़ियाँ, सभी जीवधारी
नींद के ग़ुलाम हैं।
कभी-कभी पृथ्वी तक नींद को तरसती है
नींद तो लिहाफ़ है दिन भर
मजूरी करने वालों के
नंगे जिस्म पर
फैला आकाश!
छिपकर किए ग़लत कामों की
दुश्मन है नींद
नींद मंथरापा है
मर्यादा को वन भगाने का
अचूक नुस्ख़ा—
नींद की कहानी में
बड़े मोड़ हैं।
कामी, हत्यारों, धन-पशुओं से
नींद की अदावत है!
प्रेम की लौ
नींद का बुझा चिराग़ है
ऐसे भी जीव हैं दुनिया में
थोक में पड़े रहते हिमनिद्रा में
सबसे बड़ा है वह आदमी
जो जागता सारी रात
कि अन्य सो सकें।
- पुस्तक : डूबा-सा अनडूबा तारा (पृष्ठ 21)
- रचनाकार : कैलाश वाजपेयी
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
- संस्करण : 2009
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