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वे दिन

we din

गोविंद माथुर

और अधिकगोविंद माथुर

    वे मेरे बुरे दिन

    जो गुज़रे दोस्तों के साथ

    अच्छे दिन लगते हैं

    किसी भी समय

    कोई भी दोस्त

    टपकता घर

    अनचाहे ही मिल जाता राह में

    दिख जाता

    चौराहे पर खड़ा हुआ

    कई बार बातों-बातों में

    कट जाता पूरा दिन

    घर से भूखे पेट निकलें हों

    या भर पेट

    इतनी भूख हमेशा रहती

    किसी दोस्त के घर बैठे हों

    तो दोस्त के साथ खा लिया करते

    सड़क पर हों तो

    किसी प्याऊँ पर

    ठंडा पानी पीकर

    ठहाके लगा लिया करते

    गर किसी की भी

    जेब में होती एक चवन्नी

    किसी थड़ी पर चाय पीते हुए

    घंटों बिता लिया करते

    विश्वास से भरे-भरे

    जेब से रीते-रीते

    प्रतीक्षा करते अच्छे दिनों की

    गुनगुनाते रात के तीसरे प्रहर

    शहर की सुनसान सड़कों पर

    रफ़ी, तलत, मुकेश के गीत

    कितने अच्छे थे वे दिन

    जब नहीं थी ईर्ष्या

    नहीं था अंहकार

    ही कोई

    अपेक्षा थी किसी से

    कितने लंबे लगते थे

    उम्मीद से भरे वे दिन

    कितने मुश्किल

    लेकिन कितने अच्छे लगते हैं

    आवारगी के वे दिन

    स्रोत :
    • रचनाकार : गोविंद माथुर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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