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रामसिंह

ramsinh

वीरेन डंगवाल

वीरेन डंगवाल

रामसिंह

वीरेन डंगवाल

और अधिकवीरेन डंगवाल

    दो रात और तीन दिन का सफ़र करके

    छुट्टी पर अपने घर जा रहा है रामसिंह

    रामसिंह अपना वार्निश की महक मारता ट्रंक खोलो

    अपनी गंदी जर्सी उतार कर कलफ़दार वर्दी पहन लो

    रम की बोतलों को हिफ़ाज़त से रख लो रामसिंह, वक़्त ख़राब है;

    ख़ुश होओ, तनो, बस में बैठो, घर चलो।

    तुम्हारी याददाश्त बढ़िया है रामसिंह

    पहाड़ होते थे अच्छे मौक़े के मुताबिक़

    कत्थई-सफ़ेद-हरे में बदले हुए

    पानी की तरह साफ़

    ख़ुशी होती थी

    तुम कंटोप पहन कर चाय पीते थे पीतल के चमकदार गिलास में

    घड़े में, गड़ी हुई दौलत की तरह रक्खा गुड़ होता था

    हवा में मशक़्क़त करते चीड़ के पेड़ पसीजते थे फ़ौजियों की तरह

    नींद में सुबकते घरों पर गिरा करती थीं चट्टानें

    तुम्हारा बाप

    मरा करता था लाम पर अँग्रेज़ बहादुर की ख़िदमत करता

    माँ सारी रात रोती घूमती थी

    भोर में जाती चार मील पानी भरने

    घरों के भीतर तक घुस आया करता था बाघ

    भूत होते थे

    सीले हुए कमरों में

    बिल्ली की तरह कलपती हुई माँ होती थी बिल्ली की तरह

    पिता लाम पर कटा करते थे

    ख़िदमत करते चीड़ के पेड़ पसीजते थे सिपाहियों की तरह;

    सड़क होती थी अपरिचित जगहों के कौतुक तुम तक लाती हुई

    मोटर में बैठकर घर से भागा करते थे रामसिंह

    बीहड़ प्रदेश की तरफ़।

    तुम किसकी चौकसी करते हो रामसिंह?

    तुम बंदूक़ के घोड़े पर रखी किसकी ऊँगली हो?

    किसका उठा हुआ हाथ?

    किसके हाथों में पहना हुआ काले चमड़े का नफ़ीस दस्ताना?

    ज़िंदा चीज़ में उतरती हुई किसके चाक़ू की धार?

    कौन हैं वे, कौन

    जो हर समय आदमी का एक नया इलाज ढूँढ़ते रहते हैं?

    जो बच्चों की नींद में डर की तरह दाख़िल होते हैं?

    जो रोज़ रक्तपात करते हैं और मृतकों के लिए शोकगीत गाते हैं?

    जो कपड़ों से प्यार करते हैं और आदमी से डरते हैं?

    वे माहिर लोग हैं रामसिंह

    वे हत्या को भी कला में बदल देते हैं।

    पहले वे तुम्हें क़ायदे से बंदूक़ पकड़ना सिखाते हैं

    फिर एक पुतले के सामने खड़ा करते हैं

    यह पुतला है रामसिंह, बदमाश पुतला

    इसे गोली मार दो, इसे संगीन भोंक दो

    उसके बाद वे तुम्हें आदमी के सामने खड़ा करते हैं

    ये पुतले हैं रामसिंह, बदमाश पुतले

    इन्हें गोली मार दो, इन्हें संगीन भोंक दो, इन्हें... इन्हें... इन्हें...

    वे तुम पर ख़ुश होते हैं : तुम्हें बख़्शीश देते हैं

    तुम्हारे सीने पर कपड़े के रंगीन फूल बाँधते हैं

    तुम्हें तीन जोड़ा वर्दी, चमकदार जूते

    और उन्हें चमकाने की पॉलिश देते हैं

    खेलने के लिए बंदूक़ और नंगी तस्वीरें

    खाने के लिए भरपेट खाना, सस्ती शराब

    वे तुम्हें गौरव देते हैं और इस सबके बदले

    तुमसे तुम्हारे निर्दोष हाथ और घास काटती हुई

    लड़कियों से बचपन में सीखे गए गीत ले लेते हैं

    सचमुच वे बहुत माहिर हैं रामसिंह

    और तुम्हारी याददाश्त वाक़ई बहुत बढ़िया है।

    बहुत घुमावदार है आगे का रास्ता

    इस पर तुम्हें चक्कर आएँगे रामसिंह मगर तुम्हें चलना ही है

    क्योंकि ऐन इस पहाड़ की पसली पर

    अटका है तुम्हारा गाँव

    इसलिए चलो, अब ज़रा अपने बूटों के तस्मे तो कस लो

    कंधे से लटका ट्रांजिस्टर बुझा दो तो ख़बरें आने से पहले

    हाँ, अब चलो गाड़ी में बैठ जाओ, डरो नहीं

    ग़ुस्सा नहीं करो, तनो

    ठीक है अब ज़रा आँखें बंद करो रामसिंह

    और अपनी पत्थर की छत से

    ओस के टपकने की आवाज़ को याद करो

    सूर्य के पत्ते की आवाज़ को याद करो

    सूर्य के पत्ते की तरह काँपना

    हवा में आसमान का फड़फड़ाना

    गायों का नदियों की तरह रँभाते हुए भागना

    बर्फ़ के ख़िलाफ़ लोगों और पेड़ों का इकट्ठा होना

    अच्छी ख़बर की तरह वसंत का आना

    आदमी का हर पल मौसम और पहाड़ों से लड़ना

    कभी भरने वाले ज़ख़्म की तरह पेट

    देवदार पर लगे ख़ुशबूदार शहद के छत्ते

    पहला वर्णाक्षर लिख लेने का रोमांच

    और तुम्हारी माँ का कलपना याद करो

    याद करो कि वह किसका ख़ून होता है

    जो उतर जाता है तुम्हारी आँखों में

    गोली चलाने से पहले हर बार?

    कहाँ की होती है वह मिट्टी

    जो हर रोज़ साफ़ करने के बावजूद

    तुम्हारे भारी बूटों के तलवों में चिपक जाती है?

    कौन होते हैं वे लोग जो जब मरते हैं

    तो उस वक़्त भी नफ़रत से आँख उठाकर तुम्हें देखते हैं?

    आँखें मूँदने से पहले याद करो रामसिंह और चलो।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कविता वीरेन (पृष्ठ 39)
    • रचनाकार : वीरेन डंगवाल
    • प्रकाशन : नवारुण
    • संस्करण : 2018

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