आदमी और सीटी
सीटी बजाते हुए
वह आदमी
यहाँ के कई चक्कर लगा चुका है।
शायद वह किसी नदी की शीतलता को
याद कर रहा है
और उसकी सीटी में
वहाँ हवा नदी का मोड़
बन रही है।
लग सकता है कि उसकी सीटी
किसी ग़ोताख़ोर पक्षी का
प्रशास्ति गान है।
और यह
कि उसकी सीटी में से
एक मछली
बड़ी चतुरई से सरक गई है।
यह भी लग सकता है
कि उसकी सीटी
लंबी घासों का एक लंबा गीत है
दूर से पैदल चले आते मुसाफ़िर का
थका हुआ क़दम है।
या यह भी लग सकता है
उसकी सीटी फ़ुरसत का
एक पेचीदा क्षण है
और वह आदमी हमारी कोशिशों के ख़िलाफ़ लड़ रहा है।
पर क्या यह संभव नहीं है
कि वह आदमी
अपनी भूख को
मक्कारी से टाल रहा हो;
और उसकी सीटी महज़ धोखा हो
एक चीख़ को
अदनेखा करवाने की!
- पुस्तक : आधा दिखता वह आदमी (पृष्ठ 67)
- रचनाकार : सौमित्र मोहन
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2018
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