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वितानमय

vitanmay

मनीष कुमार यादव

और अधिकमनीष कुमार यादव

    निष्ठुरताओं से घिरा भयभीत मन

    धैर्य का अभिनय कर रहा है

    अवमुक्त होने के संदर्भ में

    कुछ स्मृतियाँ कुछ आशंकाएँ बची हैं

    आगंतुक पत्र के साथ

    चपरासी

    शहर से शहर भागता है

    एक दिन ठग लिए गए समय की राख

    हमारी नियोजित इच्छाओं पर

    धूल की तरह

    पड़ रही होती है

    बहुत आत्मीय लगते हैं रास्ते

    जटिल दुनिया में आतिथ्य तलाशते

    प्रेम-पत्रों की तरह

    उस दिन अमलतास से नीचे

    कोई फूल नहीं गिरा

    पदचिह्न मिटाकर

    कोई ज्योत्सना-अभिमानी चल नहीं सकता

    मैं एक खोया हुआ यात्री हूँ

    अधिष्ठित सपनों में

    अपना घर भूल आया हूँ

    मैं जब सो जाता हूँ

    तो मुझे अपने सपनों में

    असली कहानी मिलती है

    और देखता हूँ

    आँखों से एक हाथ दूर

    पुराना अतीत बैठा है

    अजीब घटनाओं में

    समय रुकने का भ्रम छिपा है

    मन किसी शोकागार में बिलखती चिड़िया है

    सम्प्रेषित नहीं हो पाता निष्ठुर अवबोध

    कथानकों की दुर्लब्ध भाषा में गहरे डूबा मैं—

    छिछला अवसाद लिए हुए

    समय का प्रवाह अब आगे नहीं बढ़ रहा है

    (हालाँकि आत्महत्या अब एक परित्यक्त विचार है)

    और समय की प्रतिबद्धता जैसे हताशा का चेहरा है

    प्रतिबद्धताएँ कातर मन का दिवास्वप्न हैं

    यही वास्तविकता की संरचना की

    कुल तोड़फोड़ है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनीष कुमार यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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