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दिलरुबा के सुर

dilruba ke sur

शुभा

शुभा

दिलरुबा के सुर

शुभा

और अधिकशुभा

    हमारे कंधे इस तरह बच्चों को उठाने के लिए नहीं बने हैं

    क्या यह बच्चा इसलिए पैदा हुआ था

    तेरह साल की उम्र में

    गोली खाने के लिए

    क्या बच्चे अस्पताल, जेल और क़ब्र के लिए बने हैं

    क्या वे अंधे होने के लिए बने हैं

    अपने दरिया का पानी उनके लिए बहुत था

    अपने पेड़, घास, पत्तियाँ

    और साथ के बच्चे उनके लिए बहुत थे

    छोटा-मोटा स्कूल उनके लिए बहुत था

    ज़रा-सा सालन और चावल उनके लिए बहुत था

    आस-पास के बुज़ुर्ग

    और मामूली लोग उनके लिए बहुत थे

    वे अपनी माँ के साथ

    फूल, पत्ते, लकड़ियाँ चुनते

    अपना जीवन बिता देते

    मेमनों के साथ हँसते-खेलते

    वे अपनी ज़मीन पर थे

    अपनों के दुख-सुख में थे

    तुम बीच में कौन हो

    सारे क़रार तोड़ने वाले

    शेख़ को जेल में डालने वाले

    गोलियाँ चलाने वाले

    तुम बीच में कौन हो

    हमारे बच्चे बाग़ी हो गए

    कोई ट्रेनिंग

    हथियार

    वे ख़ाली हाथ तुम्हारी ओर आए

    तुमने उन पर छर्रे बरसाए अंधे होते हुए

    उन्होंने पत्थर उठाए जो

    उनके ही ख़ून और आँसुओं से तर थे

    सारे क़रार तोड़ने वालो,

    गोलियों और छर्रों की बरसात करने वालो,

    दरिया बच्चों की ओर है

    चिनार और चीड़ बच्चों की ओर है

    हिमालय की बर्फ़ बच्चों की ओर है

    उगना और बढ़ना

    हवाएँ और पतझड़

    जाड़ा और बारिश

    सब बच्चों की ओर है

    बच्चे अपनी काँगड़ी नहीं छोड़ेंगे

    माँ का दामन नहीं छोड़ेंगे

    बच्चे सब इधर हैं

    क़रार तोड़ने वालो,

    सारे क़रार बीच में रखे जाएँगे

    बच्चों के नाम उनके खिलौने

    बीच में रखे जाएँगे

    औरतों के फटे दामन

    बीच में रखे जाएँगे

    मारे गए लोगों की बेगुनाही

    बीच में रखी जाएगी

    हमें वजूद में लाने वाली

    धरती बीच में रखी जाएगी

    मुक़द्दमा तो चलेगा

    शनाख़्त तो होगी

    हश्र तो यहाँ पर उठेगा

    स्कूल बंद हैं

    शादियों के शामियाने उखड़े पड़े हैं

    ईद पर मातम है

    बच्चों को क़ब्रिस्तान ले जाते लोग

    गर्दन झुकाए हैं

    उन पर छर्रों और गोलियों की बरसात है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शुभा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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