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वसंत का हरकारा आपने देखा क्या

vasant ka harkara, aapne dekha kya

कुमार कृष्ण शर्मा

कुमार कृष्ण शर्मा

वसंत का हरकारा आपने देखा क्या

कुमार कृष्ण शर्मा

और अधिककुमार कृष्ण शर्मा

    मेले के

    सबसे ऊँचे पेड़ की

    सबसे ऊँची डाल पर बैठ

    वसंत के हरकारे ने

    आज़ादी कहा ही था—

    सर्कस में

    एक पहिया साइकिल पर

    करतब दिखा रहे

    मुख्य कलाकार की निक्कर

    घुटनों तक

    खिसक गई

    मौत के कुएँ में

    बेधड़क दौड़ाए जा रहे

    मोटर साइकिल के दोनों टायर

    धड़ाम से पंचर हो गए

    मैदान के बीचोबीच

    तंबू की छाँव में बैठे

    थानेदार की कुर्सी के नीचे की ज़मीन

    कोसे पानी से गीली हो गई

    हरकारे ने

    दूसरी बार कहा—आज़ादी

    दो गुणा दो फ़ीट के टेबल पर

    अपने रिंगमास्टर के सामने

    दुबक कर बैठा बब्बर शेर

    जीवन में पहली बार दहाड़ा

    तोते ने पिंजरे को तोड़

    कार्डों को आग लगा

    ज्योतिषी के सिर पर

    पहली बार

    बीट की

    चिपके गालों पर

    भारी फाउंडेशन लगा

    स्टेज पर

    ब्रा-पैंटी पहन

    नाचने वाली युवती ने

    तमाम अश्लील वस्त्र

    मालिक के मुँह पर मार

    पहली बार

    अपनी मर्ज़ी के कपड़े पहने

    हरकारे ने तीसरी बार

    नहीं कहा आज़ादी

    आज़ादी

    कोई मार्केटिंग टूल नहीं होती

    ही

    किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी का विज्ञापन

    जिसको बार-बार टेलीविज़न पर दिखाया जाए

    ब्रह्मांड का सबसे क़ीमती अहसास

    ख़ैरात में नहीं मिलता

    यह कहकर

    हरकारे ने

    जैसे ही नीचे छलाँग लगाई

    लचकी टहनी झट से

    हवा में झूलने लगी

    मैंने देखा मेले में

    आज़ादी की चाह रखने वाले हर किसी ने देखा

    झूल-झूलकर इतरा रही टहनी

    पलाश के फूलों से लद चुकी थी

    आपने अभी तक नहीं देखा

    क्या सच में नहीं देखा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुमार कृष्ण शर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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