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उत्तर ही बदल गए

uttar hi badal gaye

जैमिनी हरियाणवी

जैमिनी हरियाणवी

उत्तर ही बदल गए

जैमिनी हरियाणवी

और अधिकजैमिनी हरियाणवी

    पिछले सप्ताह, करिए विश्वास

    दो पत्र आए थे मेरे पास

    एक—

    किसी कवि सम्मेलन की संयोजिका का

    दूसरा—

    मायके में गई हुई मेरी पत्नी का

    संयोजिका ने लिखा था—

    ‘पारिश्रमिक दे सकेंगे

    सिर्फ़ तीन सौ पचास

    भैया, आप आओगे

    हम को है पूरी आस

    अपनी पुस्तक की

    एक प्रतिलिपि

    अपने साथ लाना

    देखो हरियाणवी जी

    भूल नहीं जाना...’

    पत्नी ने लिखा था—

    ‘अगले रविवार को

    करूँगी मैं इंतज़ार

    आना अवश्य है

    मेरे भरतार

    साड़ी दिलवानी है

    कपड़े सिलवाने हैं

    तीन सौ पचास रुपए

    अपने साथ लाने हैं...।’

    प्रातः मैंने उठकर

    दोनों पत्रों के

    दे डाले उत्तर

    संयोजिका को लिखा था—

    ‘आदरणीया बहिन जी;

    साढ़े तीन सौ के लिए

    नहीं पाऊँगा

    कहीं और से भी निमंत्रण है

    वहीं चला जाऊँगा...।’

    पत्नी को लिखा था—

    ‘प्राणों की प्यारी, प्रिय

    मैं अवश्य आऊँगा

    जो कुछ मँगाया है

    वह साथ लाऊँगा

    है सही बात यह

    तुम पर ही मरता हूँ

    तुम्होर मोटापे पर

    ध्यान नहीं धरता हूँ

    अपने डैडी को बस

    कहीं भेज देना तुम

    उनकी ही सूरत से

    मैं बहुत डरता हूँ...।’

    हाय रे बुरे दिन

    चाल नई चल गए

    लिफ़ाफ़ों में दोनों के

    उत्तर ही बदल गए

    इस फ़ेरबदल का पता चला आज ही

    जब उन दोनों की

    चिट्ठियाँ मुझे मिलीं।

    संयोजिका ने लिखा है—

    ‘पतित, पथ-भ्रष्ट हो

    यों तो शरीफ़ दिखते हो

    शर्म नहीं आती है

    प्राण प्यारी लिखते हो?

    मेरे पिता मर चुके हैं

    उनसे भी डरते हो?

    मैं तो एक बुढ़िया हूँ

    मुझ पर ही मरते हो?

    अन्य कवियों को भी

    बदनाम करवाओगे...

    अब और भविष्य में

    बुलवाए नहीं जाओगे...।’

    पत्नी ने लिखा है—

    ‘सठिया गए हो,

    कहाँ खो गए हो?

    बहिन जी लिखते हो

    पागल हो गए हो?

    देखो मैं कहती हूँ

    यहाँ नहीं आना है

    जिसने बुलाया है

    वहीं चले जाना है

    आपको अब मैं

    नाकों चने चबवाऊँगी

    मायके में रहूँगी

    कभी नहीं आऊँगी...।’

    स्रोत :
    • पुस्तक : हास्य-व्यंग्य की शिखर कविताएँ (पृष्ठ 117)
    • संपादक : अरुण जैमिनी
    • रचनाकार : जैमिनी हरियाणवी
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण पेपरबैक्स
    • संस्करण : 2013

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