Font by Mehr Nastaliq Web

उठो कंकाल

utho kankal

अनुवाद : शंकरलाल पुरोहित

गोदावरीश महापात्र

और अधिकगोदावरीश महापात्र

    दुर्गम गिरि दुर्ग प्राचीर, जीर्ण द्वार पर बैठा।

    तांत्रिक देता है पुकार-मंत्र साधना जागृत हों पुरवासी।।

    धरा तोड़ बारवाटी उठे, उठो-उठो हे चंचल।

    खोर्धा के शत सरदारों का, मस्तक करो उन्नततर।।

    उठो कंकाल तोड़ कर शृंखल, जाग उठो हे दुर्बल आज।

    जागे गत गौरव, हृत गौरव, मृत गौरव के सारे साज।।

    मेघासन मंद्र निनाद में बाजें फूलझर के राज।

    राइबनिया करण संगीत, गंजाम पथ से देता आवाज़।।

    सिंहभूम कहे मरण द्वार पर विशाखापटन को देख।

    संतान मुख, मशान की छाती पर नहीं प्राणों का संकेत।।

    उठो दुर्बल, जागो हे कंकाल टूटे शृंखल आज।

    उठे गत गौरव, हृत गौरव, मृत गौरव के सारे साज।।

    चिर वंदिता वंदिनी माँ के बंधन खोले।

    संबलपुर के वीर कहीं क्या दंभ भरें।।

    गंगा धोती चिकुर जिसके, कृष्णा चरण पखारे।

    मशान आज, मृतक देश है, उत्कल वही धरा रे।।

    उठो दुर्बल, जागो हे कंकाल टूटे शृंखल आज।

    उठे गत गौरव, हृत गौरव, मृत गौरव के सारे साज।।

    निज़ाम भवन में कलवर्गा में इन्हीं दिनों।

    गजपति वीर बरार भेद कर जय गौरव गान में।।

    दुर्गम गढ़ ‘देवरकोंडा’ कहता आज वो गाथा।

    बाराबटी के वीरों ने दिया अपना उन्नत माथा।।

    टूटें शृंखल जागो हे कंकाल, उठो हे दुर्वार आज।

    उठे गत गौरव, हृत गौरव, मृत गौरव के सारे साज।।

    खंड कुशल है खंडायत की कुशल करवाल में।

    अजेय बंग-वाहिनी सोई, शतगड़ प्रांतर में।।

    गौड़ भुवन पदावनत हुआ, मगध हो गया लीन।

    प्रतापी पुष्यमित्र भी हटा, उत्कल में शपथ लीन्हीं।।

    जागो हे कंकाल, उठो, जागो हे कंकाल आज।

    उठे गत गौरव, हृत गौरव, मृत गौरव के सारे साज।।

    कहो कहो कंकाल बता दो, किस युग की वह गाथा।

    हिमाचल के नीचे रखा था, यहाँ के वीरों ने माथा।।

    विजयी पति यवन शमन में कतार हो जा छुपा घर।

    जागो हे कंकाल, उठो, दुर्बल हे तोड़ शृंखला आज।।

    उठे गत गौरव, हृत गौरव, मृत गौरव के सारे साज।।

    हाड़ों को सिहराती भाषा आए, खिले ख़ुशी-हँसी।

    भग्न इस गढ़ में मंदिर में बजे दुंदुभी अहर्निश।।

    मशान की माटी मुट्ठी में लेकर हे पुरवासी।

    लक्ष्य जीवन साक्ष्य देंगे गौरव की गौरवशाली।।

    जागो हे कंकाल, उठो, दुर्बल हे तोड़ शृंखला आज।

    उठे गत गौरव, हृत गौरव, मृत गौरव के सारे साज।।

    नहीं समय है, समय नहीं अब, हे कंकाल सिर ऊँचा करो।

    कर विदीर्ण उपल, निर्मल तव पिंजर की व्यथा दूर करो।।

    बाज उठे वह वंशी मरण-जयी उस छाती तले से।

    धूर्जटी जटाजूट, कंपाता यौवन के कौतुहल में।

    जागो हे कंकाल, उठो दुर्बल हे तोड़ शृंखला आज।

    उठे गत गौरव, हृत गौरव, मृत गौरव के सारे साज।।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 47)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : गोदावरीश महापात्र
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए