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उसकी आँखें

uski ankhen

अनंत नीले अंबर की हैं

छायाएँ उसकी आँखों में

कहीं-कहीं निर्मल जलपूरित

अगम सरोवर के अंत में,

निहित प्रसृप्त प्रगाढ़ छायाएँ

परिलक्षित होती दृग-सर में

संध्या की वेला में आकर

उनमें समय-समय पर अक्सर

नीप वृक्ष की डार पात के

वक्र मार्ग में गुंफित तम की

फुसफुसाहटें सुन पड़ती हैं

और किसी वेला में वर्षा के

मेघों की अरुण नीलिमा के

पीछे अवगुंठित वाष्प बिंदु

ताकते हैं नेत्रयुग में

कोई ऐसी अपूर्व विचित्र

मधुर रक्ति के झिलमिल

पर समझ आनेवाले

भावगीत वे।

स्रोत :
  • पुस्तक : आधुनिक तेलुगु कविता प्रथम भाग (पृष्ठ 130)
  • संपादक : चावलि सूर्यनारायण मूर्ति
  • रचनाकार : देवुलपल्लि कृष्णशास्त्री
  • प्रकाशन : आंध्र प्रदेश साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 1969

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