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उसका हार

uska haar

बावा बलवंत

बावा बलवंत

उसका हार

बावा बलवंत

और अधिकबावा बलवंत

    रोज़ उसका हार टूट जाया करे

    मुस्कुराती के बनवाया करे

    मेरे कहने पर कि टूटा किस तरह

    पा के बल गर्दन को शरमाया करे

    मेरे सिर साया करे महकों की शाख़

    वह जो उसके मुँह पे लहराया करे

    आने से पहले भरे नाजुक तुणीर

    और भी नयनों को शरमाया करे

    जी, तनिक जोड़ो यह टूटा जाए है

    मद-भरे बोलों से हर्षाया करे

    रोज़ उसका हार टूट जाया करे

    मख़मली अंगों का स्पर्श, नवनीत कर

    मेरे हाथों के फिर साया करे

    रेशमी काया की उजली सिफ़त अब

    धरा भूषण बल पे बल खाया करे

    रूप की छोड़ो सुगंधों का नशा

    पुष्प काया के समझाया करे

    मधुर स्वर में रौ कभी बंदिश का हो

    ख़ुद भी तड़पे मुझे तड़पाया करे

    इक जुड़े, तोड़ी हुई वह दूसरी

    रोज़ उसका हार टूट जाया करे

    मुस्कुराती के बनवाया करे

    कला के मार्ग की लौ बन जाए वह

    मेरा मन क्यों ठोकरें खाया करे

    कोई सुंदरता में खोज रहा कमाल

    कोई कहता है समय जाया करे

    है मुहब्बत तेरी मंशा की बहार

    साहसी तलियों पे उग आया करे

    एक बनती-सी लगन जीवन का चाव

    मेल उसका अमल गरमाया करे

    रोज़ उसका हार टूट जाया करे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 78)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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