वह भी सफ़र में है और लोगों की तरह
इतनी सी बात, कोई उससे कहना नहीं चाहता था
वह भी एक मुसाफ़िर है—
ऐसा वह सुनना नहीं चाहता था
वह लगभग भूल चुका था कि
पृथ्वी किसी का स्थायी निवास नहीं है
वह चाहता था कि कोई उससे आगे कभी नहीं चले
जब कुछ लोग साथ चलते थे
वह असामान्य गति से आगे निकल जाता था
अगल-बग़ल से कोई निकल रहा हो तो
वह धूल उड़ाने या कीचड़ उछालने से कभी नहीं चूकता था
वह अपना सारा समय दुनिया के हर व्यक्ति को
बौना साबित करने में लगाता था
वह सौंदर्य और शीतलता के बजाय
चाँद के धब्बे का चटखारे लेकर बखान करता था
और हँस देता था... ही... ही... ही... ही...
वह आकाश पर थूकने के शातिराना अंदाज़ के लिए
कुख्यात हो चुका था
दिखाने के लिए करता था मुँह ऊपर और
सामने वाले की ओर देखकर थूक देता था पिच्च...
गालियों का प्रयोग सुभाषितों की तरह करता था
अंकों से खेलता था कंचे की मानिंद
पिस्तौल की कमी जीभ से पूरी कर लेता था
उसे देखते ही लोग स्वत: हो जाते थे किनारे
यक़ीन मानिए वह बहुत पढ़ा-लिखा था
उसकी डिग्रियाँ उसके नामपट्ट में समा नहीं पाती थीं
वह असुगंधित पुष्प भी होता तो लोगों को कोई परेशानी नहीं होती
मगर वह जिस रास्ते से गुज़रता लोग नाक बंद कर लेते थे
उसके दूर जाते ही लोग एक लंबी साँस लेकर
एक-दूसरे का मुँह देखने लगते थे
इस बीच कोई बोल पड़ता था—
अकरब मरे न छूतहर फूटे।1
- रचनाकार : ललन चतुर्वेदी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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