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ऊँट की हँसी

unt ki hansi

बजरंग बिश्नोई

बजरंग बिश्नोई

ऊँट की हँसी

बजरंग बिश्नोई

और अधिकबजरंग बिश्नोई

    ऊँट को क़ुर्बानी के लिए लाया गया

    चला आया चुपचाप क़ुर्बानी-स्थल पर

    देख कर सरअंजाम

    उसने गरदन ऊपर की

    आकाश की ओर ताका

    और ठहाका लगा कर हँसना शुरू किया तो

    रुकने का नाम ही नहीं लिया

    हज़ारों मन चमेली फूल झर गए

    इस बीच

    पचासों मन चंदन तेल

    कड़ाहों में भँवरें पड़ने से मथने लगा

    ऊँट की हँसी से क़ुर्बानी के क़साई का हौसला

    धुक-धुक करने लगा

    शरबती का गड़ासा थरथराने लगा

    क़साई की कलाई से

    ऊँट ने हँसना बंद कर दिया

    गड़ासे की धार से

    रगड़ ली ख़ुद अपनी गरदन की

    शरबती नस

    कैसी लरजती आवाज़ में उतरी

    बिस्मिल्लाह…

    ऊँट की अर्धपारदर्शी खाल से

    बनी सैकड़ों शीशियाँ

    भरी गईं संदल तेल से

    चमेली के तेल से

    कार्क की ढट्ठियों से बंद

    उनमें ऊँट की हँसी महकती है

    ऊँट की हँसी

    उसकी खाल से बनी शीशियों में

    पूरी नहीं समाती

    वह रेगिस्तान की हवा में बहुत बची रह गई

    दिन में जब प्रखर सूर्य-ताप से

    रेत अंतिम तापमान के बाद

    रात में चाँदनी से सिझाती है रेत

    तो गमक उठती है वहाँ की हवा

    जो ऊँट की खाल की बनी शीशियों में

    नहीं भर पाई ऊँट की हँसी

    उसे रेत के कवि अपनी कविता में भरते हैं

    उन्हें याद रह जाती है

    अपनी क़ुर्बानी के पहले की

    आसमान को अर्पित अपनी हँसी

    स्रोत :
    • रचनाकार : बजरंग बिश्नोई
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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