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उम्मीद चिंगारी की तरह

ummid chingari ki tarah

कौशल किशोर

कौशल किशोर

उम्मीद चिंगारी की तरह

कौशल किशोर

और अधिककौशल किशोर

    यह जो हो रहा है

    हम नहीं कर सकते इसे बरदाश्त

    हमने तो रोशनी चाही थी

    उजाले के हम सिपाही

    किरणों की अगवानी में थे

    हमारे होठों पर था साहिर का गीत

    ‘वो सुबह कभी तो आएगी’

    हम गाते-वो सुबह हमीं से आएगी

    पर यह क्या?

    धुँध ही धुँध

    धुआँ ही धुआँ

    यह कैसा अँधेरा

    कितना घना?

    जो गा रहे थे,

    वे अचानक चुप क्यों हो गए?

    क्यों बंद हो गई साज की आवाज़?

    यह रुदन, यह घुटन क्यों?

    जो विरोध में थे, वे तरल हो बहने लगे

    इस ढलुवा सतह पर लुढ़कने लगे

    अपना तल तलाशने लगे

    क्या इतना तरल हो सकता है विरोध?

    यू आर अनंतमूर्ति ने जो कहा था

    क्या वह सही कहा था?

    उन्हें धमकी भरी तजवीज़ दी गई

    वे देश छोड़ चले जाएँ

    वीजा ले-लें

    अब तो यह तजवीज़ उन सब के लिए है

    जो उनके साथ नहीं

    हवा में सनसना रही हैं धमकियाँ ही धमकियाँ

    गाँव छोड़ दो

    मोहल्ला छोड़ दो

    शहर छोड़ दो

    देश छोड़ दो

    चले जाओ

    पाकिस्तान चले जाओ

    जैसे यह देश उनके बाप का है

    मैं पुरजोर कहता हूँ

    मिल-जुलकर बनाया है हमने यह देश

    इसकी मिट्टी में हमारे पुरखों की हड्डियाँ गली हैं

    हम रहेंगे, यही रहेंगे

    भले ही निराशा हमलावर हो गई है

    और उम्मीद भूमिगत

    पर यह उम्मीद ही है

    हाँ, हाँ उम्मीद ही है

    जो राख़ के इस ढेर में

    कहीं बहुत गहरे चिंगारी की तरह

    अब भी सुलग रही है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कौशल किशोर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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