एक
तुम्हारी दुनिया का समय-चक्र
हमें स्वीकार नहीं
तुमने रँग लिया नक्षत्रों को जनेऊ के पीले रंग से
हरे पत्तों ने पीला रंग स्वीकार किया वसंत के नाम पर
सीधा घूमते हुए तुमने उल्टी दिशाएँ तय कीं
हम पीछे से आए उल्टी घड़ी के काँटों के सहारे
पीछे हम उतने ही सुंदर थे जितनी अरावली की चोटियाँ
दो
सभ्यताएँ ठहरती कहाँ हैं
जैसे तुम रुके कहाँ अब तक
आगे भागते हुए तुमने संकेतों की शैली नष्ट कर दी
मिट्टी के दीये को फूँक मारकर बुझा दिया
एक पेड़ की भाषा में कहें तो तुमने
चूल्हे की लकड़ियों पर
मूलधन बराबर ब्याज वाली थ्योरी दे मारी
तेज़ भागती घड़ी की टिक-टिक के साथ
तुमने सत्यनारायण की कथा सुनी
पीतल के लोटे में जल भरा
हवन में अंतिम समिधा डालते हुए
घी की पतली धार के साथ
स्वाहा कर दिया
हमारी उत्पत्ति का अंतिम प्रमाण
तीन
तुम घड़ी की टिक-टिक के साथ भागते हुए
एक भगोड़े हो
जिसने बाईं ओर से घुमाई जाने वाली
आरती की थाल को दाईं ओर घुमाते हुए
रची अपने लिए एक नई दुनिया!
हमारे पूर्वज
बाईं से दाईं दिशा में खेत जोतते हुए प्रकृति को जोहार कहना नहीं भूलते थे
सात फेरो के वक़्त दूल्हा घूमता है
अपनी दुल्हन के साथ
जैसे घूमते हैं ग्रह
जैसे घूमता है पानी में भँवर बाएँ से दाएँ
जैसे बैठता है साँप कुंडली मारकर
जैसे पेड़ से गिरता है कोई पत्ता
जैसे चढ़ती है कोई बेसहारा बेल किसी मज़बूत वृक्ष के तने पर
तय तो यही हुआ था
कि दाएँ से बाएँ घूमते हुए आएँगे सब अपनी जगह पर
प्रकृति को दाएँ से बाएँ वाली कहानी में फेरबदल पसंद नहीं
कि हानाडुमा (पूर्वजों की आत्मा) की तरह प्रकृति ने अपनी इस थ्योरी में छुपा रखा है जीवद्रव्य
चार
हमारी घड़ी उल्टी घूमती ज़रूर है
परंतु समय की बुरी मार से सचेत करते हुए
अपनी टिक-टिक में रहस्यों का ताबीज़ बाँधे
हमारे चौबीस घंटे के कर्मों का लेखा-जोखा छोड़ आती है
पुरखों की बासी देह में
जीवित हैं हमारे पुरखे :
घड़ी की टिक-टिक में!
पाँच
तुम्हारे समय देखने का तरीक़ा हमें स्वीकार्य नहीं
तुम आगे की ओर बढ़ते हो और हमें अभी भी पीछे की ओर छूट गई चीज़ें खींचती हैं
हमें पता है
सीधी घूमती हुई घड़ी बहुत तेज़ भागती है
हमारे अस्तित्व को तुम्हारी घड़ी की टिक-टिक से जोड़ने के बावजूद भी
हम उल्टा घूमकर लौट आते हैं अपनी जगह!
हम समय को उल्टा देखते हैं
आधुनिकता के पथ पर पाँव-पाँव भागती सभ्यताएँ
समय को सीधा देखते हुए
निकल जाती हैं अपने समय से बाहर!
छह
हम सीधे-सीधे अपनी बात नहीं कहते
हमारे संकेतों में हमारे प्रतिरोध का स्वर भरा होता है
उल्टी घूमती हुई घड़ी हमारे लिए
शुभ समय का संकेत है।
उल्टी घड़ी को हमारे उल्टे पाँव लौट जाने का संकेत मान सकते हैं और अब
''ए... मारी रोसोना
चीतरकोट चो घूमर सोभा सरग-रानी आय
इंदर राजा असन सुंदर नदी पानी आय
तुरही की धुन पर ऐसा कोई गीत गुनगुनाते हुए हम
तुम्हारे समय से बाहर निकल जाना चाहते हैं...
- रचनाकार : पूनम वासम
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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