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तुम्हीं होती हो पास

tumhin hoti ho paas

मदनलाल डागा

मदनलाल डागा

तुम्हीं होती हो पास

मदनलाल डागा

और अधिकमदनलाल डागा

    मेरे होंठों ने

    तुम्हारे होंठों को नहीं छुआ तो क्या?

    मेरे गीतों ने उन्हें छू लिया है!

    तेरे होंठों पर मेरे गीतों का मचलना

    ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है!

    वैसे तो हर व्यक्ति अर्पूण है!

    अब जब-जब तुम गुनगुनाती हो

    मुझे क़रीब पाती हो!

    मैं तुम्हारे जुगराफ़िए से अपरिचित रहा

    पर जानता रहा तुम्हारा इतिहास

    और अब भी

    जब-जब उलझनें मेरा घेराव कर लेती हैं

    एक तुम ही होती हो पास

    तुम यानी ज़िंदगी का गहरा विश्वास!

    रात को थका हारा जब मैं सोता हूँ

    स्वप्न नहीं देखता,

    तुम्हें देखता हूँ!

    स्वप्न तो मैं दिन में देखता हूँ

    जागते उजाले में

    ठीक हक़ीक़त की तरह!

    वैसे तुम भी मेरे लिए

    स्वप्न नहीं

    हकीक़त हो!

    स्रोत :
    • पुस्तक : आँसू का अनुवाद (पृष्ठ 71)
    • रचनाकार : मदनलाल डागा
    • प्रकाशन : संगम प्रकाशन
    • संस्करण : 1973

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