एक
तुम्हें सोचता हूँ
तो
नाज़िम हिकमत ‘पत्नी की चिट्ठी’ लिए
मँडराने लगते हैं आस-पास
बालम के गेह आने की गीत
गाने लगते हैं कबीर
और तो और
अलिखित अफ़सानों के सारे किरदार
छेड़ने लगते हैं मुझे
चाहता हूँ स्थगित कर दूँ
सोचना तुम्हारे बारे में
ताकि मेरे साथ
तुम्हें भी तो चैन मिले
इतने सारे लोगों से
दो
तुम्हें याद करता हूँ तो
अमरूद की मिठास से भर जाता है मुँह
चिड़ियों की चहचहाहट से
गूँजने लगता है मन
तुम्हें याद करता हूँ जैसे
पीली साड़ी पहने बच्चियों का कोई झुंड
साइकिल चलाते गुज़र जाता है पास से
तुम्हें याद करता हूँ
जैसे नहीं याद करने को
ख़ुद को याद दिलाता ही रहता हूँ
तीन
नदियों के पानी का न रुकना ही
पगाता है हजारों गाँवों-शहरों को उनके प्यार में
नदियों को जैसे रोका नहीं जा सकता बहने से
बसंत को भी कहाँ रोका जा सकता है आने से
प्यार आता है
जैसे बसंत की थाप पर मांदर की गूँज
जैसे महुए की गंध के साथ पलाश का फूल
जैसे ख़ूब साफ़ आसमान का कोई तारा
हमारा हो जाता है
प्यार जब भी आता है
मौसम कोई भी हो
बसंत लाता है
प्यार जाता नहीं
अर्थ बदलकर फिर आ जाता है
- रचनाकार : राही डूमरचीर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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