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तुम्हारे लिए

tumhare liye

योगेंद्र गौतम

योगेंद्र गौतम

तुम्हारे लिए

योगेंद्र गौतम

और अधिकयोगेंद्र गौतम

    मेरी आँखें धरती की आँखों के बहुत बाद खुली हैं

    पर अपनी आँखें खुलने के बाद मैं इसे जगे ही देखता हूँ

    रोज़ ख़बरों में देख-सुनकर समझता हूँ

    कि पृथ्वी थककर अपनी रात की तरफ़ लौट रही है

    इसका सूरज निकले बहुत समय हुआ

    हालाँकि जहाँ मेरा सूरज डूबता है,

    वह जगह बहुत दूर है उस जगह से,

    जहाँ मैं रहता हूँ

    जहाँ तुम रहती हो उसके बहुत पास उगता है शाम का तारा

    गर्म रातों को जागकर काटते हुए मुझे लगता है कि चाहे जब भी हो,

    धरती की रात बेहद ठंडी, शांत और गहरी होगी—

    उदास दूधिया चाँद के स्वप्न-सिंधु में डूबी हुई

    जब थकी हुई यह नींद के गहरे में अपनी करवट सोई रहेगी,

    और उन्मुक्त चंद्र धीरे-धीरे समेट रहा होगा अपनी प्रसृत काया

    मैं तुम्हारे लिए गुनगुना रहा होऊँगा लंबी रात की ओस में भीगी, एक धीमी... प्रेमिल धुन।

    स्रोत :
    • रचनाकार : योगेंद्र गौतम
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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