तुम्हारे अ-साध्य सौंदर्य पक्ष की ओर
tumhare a sadhy saundarya paksh ki or
अमिताभ चौधरी
Amitabh Choudhary
तुम्हारे अ-साध्य सौंदर्य पक्ष की ओर
tumhare a sadhy saundarya paksh ki or
Amitabh Choudhary
अमिताभ चौधरी
और अधिकअमिताभ चौधरी
पलकें झपकती आँखों के समक्ष
भौंहों के बीच
शून्य सिकुड़ता है तो क्या!—
अंत को पाए हुए मर्त्य की घनीभूत चेष्टाएँ
उसके अपलक होने में आहत हैं?
तुम्हारे अ-साध्य सौंदर्य पक्ष की ओर
मैंने जो स्थैर्य साध लिया है,
क्या तुम उसे विचलन की सीमा कहकर चले जाओगे?
पानी के पुल बाँधकर
उफनती नदी से पार पाओगे तुम!—
[कि, अपनी तहों में डूबी नदी वह
तुम्हें बहा ले जाने को उफनती है।]
- रचनाकार : अमिताभ चौधरी
- प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका
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