तुम सुंदर ही नहीं हो, बहुत सुंदर हो
tum sundar hi nahin ho, bahut sundar ho
आदित्य रहबर
Aditya Rahbar
तुम सुंदर ही नहीं हो, बहुत सुंदर हो
tum sundar hi nahin ho, bahut sundar ho
Aditya Rahbar
आदित्य रहबर
और अधिकआदित्य रहबर
तुम सुंदर ही नहीं हो
बहुत सुंदर हो
तुम जब भी किसानों की बात करती हो
भ्रष्ट सिस्टम की बात करती हो
परिवर्तन की बात करती हो
और ज़्यादा सुंदर लगने लगती हो
तुम्हारी सुंदरता इसलिए नहीं है
कि तुम चेहरे से सुंदर हो बल्कि
तुम्हारी बेबाक़ी, तुम्हारा अल्हड़पन
तुम्हारा आज़ाद ख़याल, तुम्हारा मन
तुम्हारी इच्छा सुंदर है
तुम जब बेड़ियों से मुक्त समाज की ख़ातिर लड़ती हो
नव भारत की कल्पना करती हो
तो तुममें सावित्री बाई फुले, शांति और सुनीति की परछाई दिखती है
जो तुम्हारी सुंदरता में गुणात्मक वृद्धि कर देती है
सबसे बड़ी बात
तुम मुझे इसलिए भी सुंदर लगती हो
क्योंकि—
तुममें एक क्रांति का ओज दिखता है
और क्रांतिकारी लोग मुझे बेहद पसंद है।
- रचनाकार : आदित्य रहबर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.