वे दिन और रात की तरह सच हैं

we din aur raat ki tarah sach hain

विनय सौरभ

विनय सौरभ

वे दिन और रात की तरह सच हैं

विनय सौरभ

और अधिकविनय सौरभ

    वे हर एक शहर में हैं

    काम पर जाती हुईं

    काम से लौटती हुईं

    शोहदों और लफ़्फ़ाज़ों के अनंत शोर से

    अपने को बचाने की कोशिश में भरी हुईं

    वे दिन और रात की तरह सच हैं

    हमारी दुनिया में

    साधुजनों की वाणियों उनके लिए परोसी शालीनता

    और अख़बारों में दर्ज क्रूरताएँ भी हैं अपनी जगह

    उनके सपनों अकेलेपन

    और संघर्षों के अनंत क़िस्से लिखते रहे हैं

    शहरों के कवि!

    कहा गया है ओस की तरह हैं उनकी इच्छाएँ

    जो कठिन मेहनत और दुख की आँच में सूख जाती हैं

    लंबी उम्र जीती हैं उनमें से बहुत कम

    प्रसवास्था में मर जाती हैं

    या छोटी-मोटी बीमारियों में

    और हरेक शहर की छोटी-सँकरी गलियों में

    उनके किराए के घर

    अनगिनत स्मृतियों की गंध से

    देवताओं के फ़ोटुओं से

    सस्ती अगरबत्ती की बची हुई ख़ुशबुओं में तिरते हुए

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनय सौरभ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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