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आदमी अध्यवसायी था

adami adhyawsayi tha

कुँवर नारायण

कुँवर नारायण

आदमी अध्यवसायी था

कुँवर नारायण

और अधिककुँवर नारायण

    ‘आदमी अध्यवसायी था' अगर

    इतने ही की जयंती मनाकर

    सी दी गई उसकी दृष्टि

    उसके ही स्वप्न की जड़ों से। उगने पाई

    उसकी कोशिशें। बेलोच पत्थरों के मुक़ाबले

    कटकर रह गए उसके हाथ

    तो कौन संस्कार देगा

    उन सारे औज़ारों को

    जो पत्थरों से ज़्यादा उसको तराशते रहे।

    चोटें जिनकी पाशविक खरोंच और घावों को

    अपने ऊपर झेलता

    और वापस करता विनम्र कर

    ताकि एक रूखी कठोरता की

    भीतरी सुंदरता किसी तरह बाहर आए।

    उसको छूती आँखों का अधैर्य कि वह पारस क्यों नहीं

    जो छूते ही चीज़ों को सोना कर दे? क्यों खोजना पड़ता है

    मिथकों में, वक्रोक्तियों में, श्लेषों में, रूपकों में

    झूठ के उल्टी तरफ़ क्यों इतना रास्ता चलना पड़ता है

    एक साधारण सचाई तक भी पहुँच पाने के लिए?

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि कविताएँ (पृष्ठ 97)
    • रचनाकार : कुँवर नारायण
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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