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रेलगाड़ी की आग

relgaDi ki aag

प्रदीप त्रिपाठी

प्रदीप त्रिपाठी

रेलगाड़ी की आग

प्रदीप त्रिपाठी

और अधिकप्रदीप त्रिपाठी

    रेलगाड़ियाँ जल रही हैं

    और बच्चे भूख की छत

    पर बैठकर तमाशा देख रहे हैं।

    ...बेरोज़गारों की आत्मा

    हिंसा करने पर विवश है।

    मेरी धमनियों में इस आग के प्रति नफ़रत है

    मुझे डर है कि

    मैं अपने घर को ही कहीं राख कर दूँ।

    तुम जानते हो

    मैं अब अपनी उम्र को बढ़ने से

    रोक नहीं सकता

    सरकारें भी नहीं रोक सकती।

    अब बच्चों ने ख़ुद को

    अधेड़ होने से मना कर दिया है

    संविधान झींगुरों की गिरफ़्त में है

    और मेरे खेतों को सरकारी साँड़ चर रहे हैं।

    सुना है

    शहर में चुनाव के कारण

    महामारियों ने फैलना स्थगित कर दिया है।

    आज छब्बीस जनवरी है

    और मैं बापू को याद कर रहा हूँ

    रेलगाड़ियों में लगी आग की लपटें

    धीरे-धीरे बढ़ रही हैं

    और बढ़ रही हैं...

    मैं एक असुरक्षित यात्रा पर होते हुए

    शोक संतप्त हूँ

    बिल्कुल निरुत्तर और निःशब्द।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रदीप त्रिपाठी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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