ट्रेन में बच्चे को दूध पिलाती माँ
train mein bachche ko doodh pilati man
ट्रेन की साइड बर्थ पर
एक माँ अपने छोटे से बच्चे के साथ खेल रही है
बच्चा माँ की गोद में खेलता-खेलता अचानक रोने लगता है
माँ उसे अपनी गोद में झुलाती है
चुप कराने की कोशिश करती है
माँ जितना दुलारती, पुचकारती है
और लाड़ करती है
बच्चे का रोना और तेज़ होता जाता है
वह हार कर पिता को थमा देती है
यह कहकर कि शायद 'भूख लगी है इसको'
और बर्थ पर लेट कर सकुचाई-सी
अपने आप में सिमटने की कोशिश करते हुए जैसे तैयार कर रही हो ख़ुद को
किसी प्राचीनतम कार्य के लिए
पिता तब तक बच्चे को गोद में लेकर बहलाता है
खिड़की के बाहर दिखाता है
उँगलियों से पेड़-पहाड़ की तरफ़ इशारा करता है
माँ ने अब अपने आप को पूरी तरह तैयार कर लिया है किसी तरह से
ट्रेन की यात्रियों से आड़ करते हुए बच्चे को स्तनपान कराने के लिए
पिता, माँ के बग़ल में बच्चे को लिटा
पत्नी और बच्चे को चादर से ढँक कर
उनके पैरों के पास किनारे बैठ चुपचाप पत्नी-बच्चे को निहार रहा है
शांत
बिल्कुल शांत
उसके चेहरे पर जो भाव है
वह मैं पढ़ने की कोशिश कर रही हूँ
ट्रेन में बैठे आस-पास के सभी यात्री अपने अपने काम में लगे हैं
किसी को भी माँ-बच्चे के एकांतिक पल से कोई लेना-देना नहीं
कुछ यात्री राजनीति और व्यवस्था पर बात करने में व्यस्त हैं
तो कुछ क्रिकेट पर बातें कर रहे हैं
बच्चा दूध पीते-पीते सो गया है
माँ अब सहज हो रही है
पिता ने इशारे से पूछा—सो गया?
माँ मुस्कुरा कर हाँ में जवाब देते हुए उठ कर बैठने की कोशिश करती है
अब दोनों सहज होकर
एक दूसरे से सटकर बैठे
बच्चे को सोते देख मुस्कुरा रहे हैं
मुझे यह दुनिया का चिर-परिचित सबसे सुंदर दृश्य लग रहा है!
- रचनाकार : असीमा भट्ट
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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