Font by Mehr Nastaliq Web

बख़्तियारपुर

bakhtiyarpur

विनय सौरभ

विनय सौरभ

बख़्तियारपुर

विनय सौरभ

एक दिन हम पिता की लंबी बीमारी से हार गए,

हम सलाहों के आधार पर

उन्हें दिल्ली ले जाने की सोचने लगे

दिल्ली में हर मर्ज़ का इलाज़ है

मरणासन्न गए हीरा बाबू दिल्ली से लौट आए गाँव!

दिल्ली में कवि कैसे होते हैं!

कौन से एकांत में लिखते हैं कविताएँ!

कैसे हो जाते हैं दिल्ली के कवि जल्दी चर्चित!

मैं दिल्ली में शाम कॉफ़ी हाउस जाना चाहूँगा

मिल-बैठकर बातें करते हुए,

सुना है, दिख जाते हैं रंगकर्मी कवि और साहित्यकार

देश समस्याओं से भरा पड़ा है!

कहाँ कवियों कलाकारों को मिल पाती होगी इतनी फ़ुर्सत!

पिता मेरी मंशा जानकर बोले

पिता शिक्षक थे

वे पूरी दुनिया के बारे में औसत जानते थे

कवियों के बारे में तो बहुत थोड़ा जानते थे

एक बार भागलपुर में दिनकर से

एक कवि सम्मेलन में कविता सुनी थी

इस बात का कोई ख़ास महत्त्व नहीं था उनके जीवन में

लेकिन बेग़म अख़्तर की ग़ज़लों के बारे में

वह बहुत कुछ बता सकते थे

पिता के जीवन में एक साध रही

कि वे बेग़म अख़्तर से मिलते!

पिता दिल्ली की यात्रा में अड़ गए अचानक!

बच्चों की सी ज़िद में बोले—

'बख़्तियारपुर आए तो बता देना'

माँ की स्मृति बहुत साफ़ नहीं थी

उसने शून्य में आँखें टिकाए हुए कहा

कि पिता की पहली पोस्टिंग संभवत बख़्तियारपुर थी

हमें इस बात का पता नहीं था

सच तो यह भी है मित्रों की पिता की ज़िंदगी के बहुत से

ज़रूरी हिस्सों के बारे में हम अनजान थे

अभी महानगर की ओर भागती

इस ज़िंदगी की ज़रूरत में

पिता की स्मृतियाँ चालीस वर्ष पुराने चौखटे लाँघ रही थी!

पिता दिल्ली की इस यात्रा में कहीं नहीं थे!

थोड़ी देर के बाद अकबकाए हुए से बोले—

'मुझे खिसकाकर खिड़की के पास कर दो

रामाधार महतो की चाय पीऊँगा'

फिर उन्होंने अपने स्कूल के बारे में बताया

जो कभी प्लेटफ़ॉर्म के किनारे से दिखता होगा

पिता की आँखें उस समय बच्चों की शरारती आँखों की भाँति

नाच रही थी

ऐसे में माँ किसी अनिष्ट की आशंका में रोने लगी

एकाएक उन्होंने संकेत के समय पूछा

और पूरे विश्वास से कहा कि बच्चे अभी स्कूल से छूट रहे होंगे

पिता नींद में जा रहे थे और बख़्तियारपुर आने वाला था

एक चाय बेचते लड़के से मैंने रामाधार महतो के बारे में पूछा

लड़का चुप था

वह स्कूल के बारे में भी कुछ नहीं बता सका

उसने स्कूल के बारे में कोई रुचि नहीं दिखाई

हम आश्चर्य में भरे पड़े थे

पिता की नींद महीनों के बाद लौटी थी

यह उनके स्वास्थ्य के लिए अच्छा था

हम नहीं चाहते थे कि उनकी नींद पर पानी पड़े!

बख़्तियारपुर गुज़र गया था

और इसे लेकर हम एक अनजाने अपराधबोध और संकोच से घिर गए थे

लेकिन इस समय हम पिता की नींद की सुरक्षा के बारे में सोच रहे थे

और इसके ख़राब हो जाने के प्रति चिंतित थे

एक बार उनकी आँखें आधी रात को झपकीं

उन्होंने अस्फुट स्वर में कहा कि बख़्तियारपुर आए तो बता देना

उन्होंने नींद में ही स्कूल बच्चे रामाधार महतो की चाय जैसा कुछ कहा

हम सब सहम गए

हमारी विवशता का यह दुर्लभ रूप था

उनकी नींद की बात की जिज्ञासाओं को लेकर

हम किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति में थे

इस यात्रा में पिता कविता के बहुत ज़रूरी हिस्से को जी रहे थे

यह सिर्फ़ मैं समझ रहा था

यह तय था—

बख़्तियारपुर पिता की नींद में

अभी सुंदर सपने की तरह गड्डमड्ड हो रहा होगा

लेकिन दोस्तो!

हम बख़्तियारपुर के किसी भी ज़िक्र से बचना चाहते थे

हम इस शब्द के एहसास से बचना चाहते थे

स्रोत :
  • रचनाकार : विनय सौरभ
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY