एक
बताया नहीं जा सकता
कब हुआ
कैसे हुआ
किस छुअन से
किस साँस से
प्रेम से
कितना मिलता-जुलता है यह!
दो
कितने ही लोग हैं
जो हज़ारों साल से चल रहे हैं क्वारंटीन
किसी स्पर्श के इंतज़ार में
आख़िरी हग और चुंबन के इंतज़ार में
बराबर बँटी दुनिया के इंतज़ार में!
तीन
क्या कहूँ इसे
फ़िल्म की तरह वह लड़की मिली
आख़िरी दृश्य में
कोरोना की तरह
ज़िंदगी में आई लड़की
फिर मिली उस दिन
जिस दिन सबसे ज़्यादा
कोरोना के पेशेंट दर्ज हुए थे
इस फ़ानी दुनिया में!
चार
दो हिस्सों में बाँटूँगा दुनिया
कोरोना से पहले और बाद की
कितनी-कितनी चीज़ें आईं
और फैलती चली गईं
इसके संक्रमण की तरह :
हिंसा, लालच, घृणा, ईर्ष्या
लेकिन प्रेम भी तो आया था इसी तरह
चुपचाप, बेआवाज़
और अभी तक दुनिया संक्रमित भी है इससे!
पाँच
तजुर्बेकार कह रहे हैं :
कई-कई महामारियों और प्रलयों से बचा है मनुष्य
इस बार भी बचेगा
कैसे कहूँ
ज़िंदा रहने के लिए केवल साँस नहीं साथ भी चाहिए
उस साँवली लड़की का
जो धरती पर आई थी कोरोना की ही तरह
कोरोना से पहले!
छह
छेद के बाहर से देखो
कोरोना समेत लाखों वायरस कह रहे हैं :
मनुष्य भी एक ख़तरनाक वायरस है!
सात
भीतर रहना बचाव है
अपनी स्केच-बुक में
सितार का स्केच बनाता लड़का
बरसों से जानता है!
आठ
सब-कुछ साफ़ हो जाए
सारा कुछ निर्मल
धरती न जाने कब से चाह रही है
वायरसों से मुक्ति!
नौ
वेंटिलेटर और दवाइयाँ ही नहीं
दिल भी बाँटो दुनिया में,
कहता जा रहा है कोरोना
जिसे कोई नहीं सुन रहा है!
दस
तीस साल पहले
मैंने लगा दिया था मास्क
कि न लूँ कोई ख़ुशबू तुम्हारे सिवा
न मिलाऊँ किसी से हाथ तुम्हारे बाद
भीतर रहते
इतना संन्यस्त हो गया हूँ मैं
कि दुनिया को देखे बिना जी रहा हूँ
इतने लंबे क्वारंटीन के बाद भी
नहीं मर रहा है ढाई अक्षर का वायरस!
- रचनाकार : विनोद विट्ठल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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