इस गाँव को उन बच्चों की नज़र से देखना है
is ganw ko un bachchon ki nazar se dekhana hai
इस गाँव तक पहुँच गया है
एक काला, चिकना, लंबा-चौड़ा राजमार्ग
जीभ लपलपाता
लार टपकाता एक लालची सरीसृप
पी गया है झरनों का सारा पानी
चाट गया है पेड़ों की तमाम पत्तियाँ
इस गाँव की आँखों में
झोंक दी गई है ढेर सारी धूल
बदरंग कर दी गई है
इस गाँव की हरी-भरी देह
चैन ग़ायब है
इस गाँव के मन में
सपनों की बयार नहीं
संशय का गर्दा उड़ रहा है
बड़े-बड़े डायनोसॉर घूम रहे हैं
इस गाँव के स्वप्न में
तीतर, कोयल और हिरण नहीं
दनदना रहे हैं हेलिकॉप्टर
और भीमकाय डंपर
इस काले-चिकने लंबे-चौड़े राजमार्ग से होकर
इस गाँव में आया है
एक काला, चिकना, लंबा-चौड़ा आदमी
इस गाँव के बच्चे हैरान हैं
कि इस गाँव के सभी बड़े लोग एक स्वर में
उस वाहियात आदमी को ‘बड़ा आदमी’ बतला रहे
जो उनके क्रिकेट खेलने की जगह पर
काला धुआँ उड़ाने वाली मशीन लगाना चाहता है!
जो उनकी खिलौना पनचक्कियों
और नन्हे गुड्डे-गुड्डियों को
धकियाता रौंदता आगे निकल जाना चाहता है!
मुझे इस गाँव को
एक ‘बड़े आदमी’ की तरह डाक बंगले
या शेवेर्ले की काली खिड़की से नहीं देखना है
मुझे इस गाँव को
उन ‘छोटे बच्चों’ की तरह अपने
कच्चे घर के जर्जर किवाड़ों से देखना है
और महसूस करना है
इन दीवारों का दरक जाना
इन पल्लों का खड़खड़ाना
इस गाँव की बुनियादों का हिल जाना!
- रचनाकार : अजेय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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