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हम क्रांतिकारी नहीं थे

hum krantikari nahin the

आर. चेतनक्रांति

आर. चेतनक्रांति

हम क्रांतिकारी नहीं थे

आर. चेतनक्रांति

और अधिकआर. चेतनक्रांति

    हम क्रांतिकारी नहीं थे

    हम सिर्फ़ अस्थिर थे

    और इस अस्थिरता में कई बार

    कुछ नाज़ुक मौक़ों पर

    जो हमें कहीं से कहीं पहुँचा सकते थे

    अराजक हो जाते थे

    लोग जो क्रांति के बारे में किताब पढ़ते रहते थे

    हमें क्रांतिकारी मान लेते थे

    जबकि हम क्रांतिकारी नहीं थे

    हम सिर्फ़ अस्थिर थे

    हम बहुत ऊपर

    और बहुत नीचे

    लगातार आते-जाते रहते थे

    हम तेज़ भागते थे

    अपने आगे-आगे

    और कई बार हम पीछे छूट जाते थे

    कई-कई दिन अपने से भी पीछे

    घिसटते रहते थे

    कोई भी चीज़ हमें देर तक

    आकर्षित नहीं करती थी

    हम बहुत तेज़ी से आकर चिपकते थे

    और अगले ही पल गालियाँ देते हुए

    अगली तरफ़ भाग लेते थे

    ज्ञान हमें कन्विंस नहीं कर पाता था

    और किताबें खुलने से पहले

    भुरभुरा जाती थीं

    हम अपना दुख कह नहीं पाते थे

    क्योंकि वह हमें झूठ लगता था

    हम अपना सुख सह नहीं पाते थे

    क्योंकि उसके लिए हमारे भीतर कोई जगह नहीं थी

    और वह हमें बहुत भारी लगता था

    हमारे आस-पास बहुत सारी ठोस चीज़ें थीं

    लेकिन हमें लगता रहता था

    कि किसी भी क्षण हम हवा होकर उनके बीच से निकल जाएँगे

    और फिर किसी के हाथ नहीं आएँगे

    हम बहुत अकेले थे

    और भीड़ में स्तब्ध खड़े रहते थे

    लोग हमें छूने से डरते थे

    जैसेकि हम रेत का खंबा हों

    हम रेत का खंबा नहीं थे

    लेकिन लोहे की लाट भी नहीं थे,

    हम सिर्फ़ यह नहीं समझ पाए थे

    कि भीड़ से बाहर रहते हुए भी भीड़ में कैसे हुआ जाता है

    जबकि ज़्यादातर चीज़े इसी पर निर्भर थीं

    कोई शिक्षा संस्थान हमें चालाकी नहीं सिखा पाया था

    मार्च की गुनगुनी हवा हमें पागल कर देती थी

    और हम सब कुछ भूल जाते थे

    हम प्यार करना चाहते थे

    लेकिन कर नहीं पाते थे

    हम लिंगभेद से परेशान थे

    और संबंधभेद से भी

    समर्पित योनियों और आक्रामक शिश्न

    हमारी वासना की नैतिकता को कचोटते थे

    और हम बलात्कार को अनंतकाल के लिए स्थगित कर देते थे

    हम अपने ही शरीर में एक शिश्न और एक योनि साथ-साथ चाहते थे

    ताकि हमें भाषा का सहारा लेना पड़े

    हमारे पास बहुत कम शब्द रह गए थे

    जिन पर हमें यक़ीन था

    और उनका इस्तेमाल हम कभी-कभी करते थे

    हम गूँगे हो जाने को तैयार थे

    पर उसकी भी गुँज़ाइश नहीं थी

    हर बात का जवाब हमें देना पड़ता था

    और हर सवाल हमसे पूछा जाता था

    हर जगह, हर समय एक युद्ध चल रहा था

    हम लड़ना नहीं चाहते थे

    लेकिन भागना भी हमारे वश में नहीं था

    हम हारे, हम थके, हम पीछे हटे, हमने सारे हथियार उन्हें सौंप दिए

    बाक़ायदा उनसे पिटे भी

    लेकिन हमें जाने नहीं दिया गया

    हमने परंपरागत आपत्तियों को मौक़ा देना छोड़ दिया

    परंपरागत पैंतरों को उत्तेजित करना छोड़ दिया

    इस तरह हम फ़ालतू हुए

    युद्ध के लिए बेकार

    तब उन्हें यक़ीन हुआ कि हम लड़ नहीं सकते

    वे एक-दूसरे को लड़ने की सुविधा देते हुए लड़ रहे थे

    उनके बीच एक समझौता था

    जो अनंत से चला रहा था,

    हमने उसे तोड़ा

    इस तरह युद्ध-क्षेत्र के बीच हम बचे

    नि:संदेह हमारा युद्ध नहीं था वह

    और हम शुरू से इसे जानते थे

    जो भी हमसे भिड़ा छटपटाते हुए मरा

    क्योंकि वह लड़ने का आदी हो चला था

    और हम बैठे सिगरेट पीते रहते थे

    हम दफ़्तरों से, घरों से, पिताओं और

    पत्नियों से भागकर

    सड़कों पर चले आते थे

    जो सूनी होती थीं,

    और बहुत सारे लोग उन पर आवाज़ किए बग़ैर रेंगते रहते थे

    हर सड़क से हमारा कोई कोई रिश्ता निकल आता था

    और हम कम-से-कम एक दिन उसके नाम कर देते थे

    हम मौत से भाग रहे थे

    एक दिन हमें अचानक मालूम हुआ

    कि वह हमारे पीछे-पीछे चल रही थी

    हमारा हर क़दम मौत के आगे था

    और उसका हर क़दम हमारे पीछे

    हम जीवन-भर एक भी क़दम अपनी इच्छा से नहीं चले

    हमें कोई पीछे से धक्का देता था

    हमें सिर्फ़ भय लगता था

    वही हमारी इच्छा थी

    हम क्रांतिकारी नहीं थे

    हम सिर्फ़ अस्थिर थे

    और स्थगित...

    ये हमने मरने के बाद जाना कि

    वह स्थगन ही

    दरअसल उस समय की सबसे बड़ी क्रांति था

    स्रोत :
    • पुस्तक : शोकनाच (पृष्ठ 50)
    • रचनाकार : आर. चेतनक्रांति
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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