तुम मुझसे मिलना चाहते हो न
तो आओ, मिलो मुझसे और एक बोसा ले लो
मिलो उस क़स्बाई गंदगी और ख़ुशबू से
जिसने मिलकर मुझे जवान किया
जिसने खेतों से कटते प्लॉट देखे
मुहल्ले के उसे पुराने जर्जर मकान से मिलो
जिसका सबसे पुराना व्यक्ति पिछले दिनों मर गया
घर के पिछवाड़े होते थे मासिक धर्म के कपड़ों के घूरे
उनके बीच जगह ढूँढ़ कर शौच करतीं उन औरतों से मिलो
जिनके पिता या पति उम्र भर शराबी रहे या बेरोज़गार
सँकरी गलियों में टँगे छज्जों पर
शाम होते ही लटकने लगती थीं घूँघट वाली बहुएँ
छोटी-छोटी बातों पर करती थीं खिलकौरियाँ
और कभी बात करते-करते रो उठतीं
मैं चाहती हूँ तुम उन बहुओं से मिलो
अभी भी उनकी आँखों के गड्ढों में नमकीन पानी भरा है
तीन-छह-दस तोले सोने में लदीं
मेहँदी और महावर से सजीं बीस-बाईस साल की लड़कियाँ
ससुराल से लौटकर आईं तो पचास की हो गईं
उन पचास साल की बूढ़ी लड़कियों से मिलो
कभी-कभार राखी और शादी-ब्याह के मौक़ों पर आती हैं बस
और आते ही बता देती हैं जाने की तारीख़
सीलन भरे कमरे में रात भर तड़पती थीं कुछ जवान छातियाँ
जो सुबह होते-होते सूख जातीं
कभी उन सूखी छातियों वाली प्रेमिकाओं से मिलो
देखो कैसे उनके जिस्म बर्फ़ हुए हैं
पानी की सब्ज़ी में तैरते थे दो-तीन आलू और एक टमाटर
बासी रोटियों के झुंड पर गिरते थे कई हाथ
जिनकी रेखाओं में भरी थी बर्तनों के माँजन की राख
मैं चाहती हूँ तुम उन हाथों से मिलो
और उनका एक बोसा ले लो।
- रचनाकार : नेहा नरूका
- प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका
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