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शैटगे : जहाँ ज़िंदगी रिसती जाती है

shaitge ha jahan zindagi risti jati hai

सविता सिंह

सविता सिंह

शैटगे : जहाँ ज़िंदगी रिसती जाती है

सविता सिंह

और अधिकसविता सिंह

    वह शैटगे ही था

    शहर के बाहर एक टापू

    जिस पर बर्फ़ और हवा वैसी ही थी

    जैसी शेरब्रुक पर

    जहाँ पहली बार इस शहर को मैंने पाया था

    यहीं मुझे एलीना मिली थी

    सूजी आँखों वाली सुंदर एलीना

    उसी ने मुझे बताया था

    दुख के अपने आह्लाद हैं

    जैसे उसका अपना एक जीवन

    और जहाँ इतना दुख हो

    और इतनी तरह का

    बेहतर है उसी की तरफ़ हो लेना

    एक समय बाद वैसे भी दुख दोस्त की तरह

    हो जाते हैं

    लगते हों भले पहाड़ जैसे

    होते हैं वे हम जैसे ही

    अपनी आँखों में सच्चे

    दूसरों के लिए संदिग्ध

    उनके बग़ैर भी ख़ालीपन महसूस होता है

    बेचैन कर देने वाला अतार्किक सूखा

    एक ख़तरनाक मासूमियत से भरी उन्मादी ऊब

    कभी भी ठंडी हवाओं की तरह आकर

    अंदर बैठ जाने वाली झुरझुरी पैदा करता

    तभी देखो यह जानते हुए

    कि किनके साथ सुखी रहा जा सकता था

    मैं एरिक के पास गई

    उसके साथ घूमती रही वर्षों

    उसकी धुँधुआती दुनिया में

    जिसमें अनिश्चय कविता हशीश और

    अनगिनत दूसरी औरतें थीं

    कुछ भी नहीं मेरे लिए...

    जो था वह दुख था

    जिसे पाने के लिए ही

    शायद मैं उस तक गई थी

    शैटगे जहाँ एलीना रहती थी...

    वहाँ से थोड़ी दूर रेड इंडियंस के

    रिहायशी इलाक़े थे रेड इंडियंस के रिजर्व

    यानी वे विशाल कारागार

    जिनमें वे और उनके पोनी

    एक दूसरे को जीते नष्ट हो रहे थे

    'यहाँ भी क्या है' एलीना जैसे ख़ुद से पूछती हुई

    कहती है ‘दुख' ही तो

    तभी तो मैं शैटगे आई रहने

    मेरी बग़ल में रहने वाली रोज़ भी शायद

    इसीलिए यहाँ आई हो

    वह क्राइसलर के लिए काम करती है

    आधी पागल आधी अकेलेपन के कारण रुग्ण

    लेकिन उसी से मेरी बनती है

    उसके पागलपन में जो सच्चाई है

    वह कहीं और नहीं बच सकती थी

    जैसे मनुष्यों से सच्चा प्यार करना

    किसी ग़रीब के लिए फ़िक्र करना

    अब पागलपन ही समझा जाता है

    इसलिए शून्य से तीस डिग्री नीचे तापमान वाला यह टापू

    उसे जलता हुआ दिखता है

    इस कड़ाके की ठंड के बावजूद

    वह नंगे पाँव बर्फ़ पर चलकर घर-घर जाती है

    बौद्ध धर्म का प्रचार करती

    शांति का उपदेश देती है—‘दुख अवश्यंभावी है

    जब तक आसक्ति है यानी यह संसार'

    लोग उस पर दया कर अपने दरवाज़े खोलते हैं

    कुछ पैसे और खाने-पीने की चीज़ें थमा देते हैं

    सोचकर वह भिक्षुणी है जिससे संसार छूट गया है

    और वह भी सचमुच बौद्ध है

    जो मिलता है स्वीकार करती है

    फिर रेड इंडियंस के रिज़र्व में जाकर

    बाँट आती है

    उनके बच्चों और मवेशियों से घंटों खेलती है

    और हँसती है अपने इस संसार पर

    जिसमें वह रहती है

    अक्सर ये लोग भी उसे ख़ाली हाथ नहीं लौटाते

    अपनी उदारता में प्रवीण

    वे अक्सर उसे हाथ से बुने गरम मोज़े और

    दस्ताने भेंट करते हैं

    जिन्हें लाकर वह

    हम जैसों के बीच फिर बाँट देती है

    उनके सेब और नाशपाती जिन पर

    उनके नाख़ूनों के निशान होते हैं

    जैसे उन्हें टटोलकर ब्रह्मांड का रहस्य

    जाना गया हो

    ख़ासकर मुझे थमा जाती है

    एक दिन एलीना मुझे ले गई

    शैटगे के ऐसे रेस्त्राँ में

    जहाँ उसका कहना है यहाँ की सबसे स्वादिष्ट

    कॉफ़ी और गाजर की मफ़िन मिलती है

    यहाँ एरिक भी आता है

    अपनी कविताओं अनिश्चयों और औरतों के साथ

    कभी-कभी कोई बेहद सुंदर लड़की साथ होती है

    जिसे देख लगता है सौंदर्य भी

    दुख के उत्तुंग शिखर पर ही स्थित है

    मृत्यु से बस छलाँग भर की दूरी पर

    सब कुछ जानती हुई फिर क्यों बढ़ी

    ख़ुद एलीना उस पर्वत की तरफ़ मैंने सोचा

    जहाँ कविता और नश्वर देह

    एक दूसरे से यूँ उलझे थे

    तभी आँखों से वह इशारा करती है

    देखो रेस्त्राँ के उस कोने में

    कैसे प्रेम और मृत्यु एक दूसरे के सामने बैठे हैं

    यानी रिज़वाना और एरिक

    एरिक की अलसायी आँखों में सचमुच

    एक ऐसा विराग तैर रहा था

    जिसमें जीवन के लिए लापरवाही और तिरस्कार था

    हवा बर्फ़ और उस सुंदर देह के लिए भी

    जो ठीक उसके सामने थी उसमें मिल जाने को आतुर

    पूरी तरह पराजित

    लेकिन एक ठहरा हुआ धीरज

    जैसे वह उसके धुआँ-धुआँ संसार में

    हशीश से भी ज़्यादा विश्वसनीय सच्चाई का

    इंतज़ार करता हो

    मगर किसका?

    एलीना जैसे अपने होंठों से नहीं

    डबडबाई आँखों से कहती हो...

    एक यात्रा के ख़त्म होने का

    एक सुंदर मौत का जो मुझसे और

    रिज़वाना से भी ज़्यादा मोहक हो

    मगर क्यों... एक बेचैनी मुझे बेधने लगी

    ‘क्यों नहीं मगर’ पूछती है मुझसे ही एलीना

    क्या है जो दुख से ज़्यादा स्थायी है

    ज़्यादा सहिष्णु संवेदनशील साथ देने वाला

    क्यों वह चाहे उसे जो है

    दुख का अंतिम पड़ाव मृत्यु

    जीवन तो ऊँघती हुई ऊब है उसके लिए अब

    एक छल जिसमें जितना डूबो

    उतनी ही बढ़ती जाती है उसकी गहराई

    जितना चाहो उतनी ही रेत

    भुरभुरी उदासी हाथ आती है

    एरिक सब कुछ समझ चुका है

    तभी स्थितप्रज्ञ वह बीतने दे रहा है ख़ुद को

    जैसे अमरीका की असली नियति हो वह

    उसके माँ बाप याद करने लायक़

    कोई घर जिसे वह कहे अपना

    और अमरीका तो रेड इंडियंस का घर है

    वह इसे जानता है

    इसलिए वह रहता है अपने

    धुएँ हशीश और कविता में

    इंतज़ार करता एक सहनीय अंत का

    एलीना की इस तरफ़दारी में

    एरिक के लिए उसका छुपा प्रेम झलका पहली बार

    प्रेम में मृत्यु के लिए पहली ही बार

    ऐसा सच्चा निवेदन देखा था

    फिर भी यह सब कितना गड्डमड्ड है

    सब कुछ एक ख़तरनाक ढलान पर जैसे

    किसी तरह ठहरा हुआ

    बर्फ़ से ढँका यह द्वीप

    इतना धवल उज्ज्वल होते हुए भी कितना रक्ताक्त है

    लाल कत्थई नीला

    क्यों जिम की जगह एरिक है

    सुख की जगह दुख एलीना के लिए

    क्यों शेरब्रुक की तरह नहीं हैं दूसरी जगहें यहाँ की

    जहाँ एक दूसरे को चूमते हैं प्रेमी

    बाँहों में डाले बाँहें चले जाते हैं

    किसी अनंत में

    बेफ़िक्री की सुनहरी सुबह की तरफ़

    या फिर शेरब्रुक सुनहरा भ्रम है मेरा अपना

    और वे चुंबन जीवन के अंतिम उच्छ्वास

    गहरी साँस लेती हुई जैसे किसी नींद से जगी हो

    एलीना कहती है

    सिर्फ़ दुख अनंत है

    प्रेम का अंत होना ही है किसी शैटगे में

    किसी पोनी के खुरों के ठीक नीचे

    शराब में डूबी किन्हीं आँखों में

    जिनमें अपने देश का सपना अब भी मरा नहीं है

    जहाँ अब अमरीका है विस्थापित किए हुए

    एक दूसरे देश को

    विशाल फैला हुआ था जो कभी

    उनके जंगली भैंसों की चरागाह

    आखेट स्थल उनके बच्चों का

    स्वच्छंदता का अंतिम फैलाव था जो

    मनुष्यता का...

    वह शैटगे है जहाँ हम अभी हैं

    यह सिर्फ़ एक जगह नहीं उत्तर अमरीका में

    एक द्वीप बर्फ़ से ढँका

    घिरा हुआ बर्फ़ की नदी से

    यह एक पड़ाव है जीवन का

    जिसे यातनाओं ने रचा है

    जहाँ ख़ुद को नष्ट करना जीने का एक तरीक़ा है

    जिंदगी जहाँ रिसती हुई बर्फ़ में मिलती जाती है

    और हम जो यहाँ रहते हैं

    जिनके पोनी हैं बच्चे

    जिनको नहीं बचा सकती रोज़ भी

    अपने बौद्ध संदेश से

    जिनको नहीं आता ऊनी मोज़े और दस्ताने बुनना

    जैसे नहीं आता यह जीवन जीना ही

    सोचो उनके लिए शैटगे कैसा माक़ूल पड़ाव है

    जीवन झाड़ देने का

    और उधर पश्चिम की तरफ़

    जहाँ एक छोटा-सा घर दिखता है

    पेड़ों पत्तों के बीच भी कितना अकेला

    ओढ़े कैसा सूनापन

    उधर एलिस रहती है

    अपने दो अपंग बच्चों और कई बिल्लियों के साथ

    वह भी हमारी ही तरह दुख को समझती है

    इसीलिए वह उसे अपने बाहर-भीतर जीने देती है

    कह सकते हैं वह नहीं, दुख उसे जीता है

    कभी-कभी ही भीतर उसके अराजकता लौटती है

    छिन्न-भिन्न करती हुई उस कठोर संतुलन को

    जो उसका जीवन है

    जब चाहकर भी सुख के लिए विलाप करना

    वह बंद नहीं कर पाती

    नहीं त्याग पाती कामना

    प्रेम, सौंदर्य और एरिक को पाने की

    जो उसका पहला प्रेमी था

    जो अब नहीं दे सकता किसी को कुछ भी

    रेड इंडियंस को अमरीका

    सौंदर्य को प्रेम

    अपनी ऊब और उदासी के सिवा एक शिथिल

    देह ही बची है उसके पास

    वह भी हशीश और कविता के लिए

    जिसकी जरूरत नहीं अमरीका को

    यथार्थ का यह कैसा

    अपना ही दुःस्वप्न है

    यानी एलीना का

    जिसमें उसका एरिक

    समय की आँखों में लुप्त हो चुका है

    बचे रह गए हैं बस रेड इंडियंस

    मूल निवासी धरती के इस हिस्से के

    जिन्हें उनके आँसू बचाते रहे हैं

    रखते रहे हैं जो सपनीली आँखों को तर

    स्वप्न और दुःस्वप्न का फ़ासला आख़िर

    एक दो रातों का ही होता है

    हो सकता है एक रात एरिक लौटे

    एलीना के सपनों में

    प्रेम और सच्चाई पर बातें करे

    जिसमें से पूरी तरह ग़ायब हो

    हशीश और अमेरिका

    सारा विध्वंस सारी हिंसा

    स्रोत :
    • पुस्तक : स्वप्न समय (पृष्ठ 74)
    • रचनाकार : सविता सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2013

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