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अफ़सोस-दर्पण

afsos darpan

हेमंत शेष

हेमंत शेष

अफ़सोस-दर्पण

हेमंत शेष

त्रास गिरते हैं आसमान से गरजते हुए बिजली की तरह

और मृत्यु, एक नि:शब्द चौकन्नी बिल्ली :

हर शोर और चुप्पी समेत

ख़राब दिन बिना किसी चेतावनी के आते हैं इसी तरह

सूख जाते हैं पेड़ और समुद्र, सभ्यताओं को निगल जाते हैं

पूछते हैं हम एक दूसरे से :

आप कैसे हैं?

संसार के मर्तबान में खौलते तले जाते हम

एक झीनी रोशनी में उबलती अकुलाती पारदर्शी छायाओं की तरह हैं

सिर्फ आत्माविहीन त्वचाएँ

जैसे चिथड़े और चिंदियाँ हवा में लावारिस उड़ते हों

वक़्त का जबड़ा क्रूरता से हम पर हँसता है

लोग आर्त्तनाद की सूरत में गाते हैं अभ्यर्थनाएँ

गाते जाते हैं...

जलते उबलते

ऊपर-ऊपर से ख़ुश एक दूसरे से प्रश्न करते :

'नमस्ते... भाई साब! कैसे हैं आप?'

संसार का एक पुराना सवाल :

सबसे एक-सा झूठ बुलवाते हुए

कि हम कैसे हैं?

स्रोत :
  • रचनाकार : हेमंत शेष
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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