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प्यार में डूबी हुई माँ

pyar mein Dubi hui man

पवन करण

पवन करण

प्यार में डूबी हुई माँ

पवन करण

मैं दुनिया की सबसे ख़ुशनसीब लड़की हूँ

वह इसलिए कि मेरी माँ इन दिनों

अपने पुरुष मित्र के प्यार में डूबी हुई है

और मैं उन्हें आपस में एक-दूसरे को

चुपके-चुपके प्रेम करते हुए देखती हूँ

पिता, तुम्हारे जाने के बाद, कितने बरस,

कितनी अकेली, कितनी उदास रही माँ

तुम इस तरह कैसे छोड़कर चले गए उसे

क्या तुम्हें माँ से अधिक प्यार नहीं था

क्या इस दुनिया में मेरी माँ से ख़ूबसूरत कुछ और भी है

मैं दावे के साथ कह सकती हूँ

मेरी माँ दुनिया की सबसे ख़ूबसूरत औरत है

और तुम्हें तो समय ने यह ख़ज़ाना

यूँ ही सौंप दिया था फिर तुम्हें क्या हुआ

जो तुम इस दूध, शहद, चंदन, फूलों और पवित्रता के

मिश्रण से बनी जन्नत को चले गए छोड़कर

माँ की देह के वेग उसकी कामुक चंचलता

और संसर्ग-संयम के बारे में

तुमसे बेहतर कौन जानता होगा

क्या तुम्हें जीते जी कभी नहीं लगा कि तुम्हारे बाद

कितना कठिन होगा इस नदी को बाँध पाना

कि तुम कितने संपन्न थे

और कितनी विपन्न बना गए उसे एक दिन

माँ तो भूल चुकी थी सारे रंग

उसे चटख दिखाओ तो वह उसे फीका बतलाती

मीठा खिलाते तो उसे कड़वा कहकर उलट देती

गीत सुनते ही रख लेती कानों पर हाथ

कहीं आती-जाती तो छीलती हुई अपनी आँखों से सड़क

फिर एक दिन माँ की अँधेरी दुनिया में

रोशनी की एक छोटी-सी तीली जली

जो देखते-देखते माँ के समय के साथ-साथ

उस कमरे में भी सूरज की तरह फैल गई

जिसकी एक दीवार पर फूलों से सजी

तुम्हारी बाईस साल पुरानी तस्वीर टँगी है

अब तुम्हें वाक़ई नहीं मालूम पिता कि माँ

इस उम्र में कितनी ख़ूबसूरत देती है दिखाई

और प्रेम करती हुई माँ को देखती

मैं क्यों फिरूँ बौराई

प्रेम करती हुई माँ इन दिनों

बिल्कुल मुझे जैसी लगने लगी है

जैसे मेरी स्कूल की कोई सहेली

शरारती, चंचल और हँसमुख

इन दिनों उसे देखकर लगता ही नहीं

कि यह औरत तुम्हारी विधवा है

इन दिनों मैं उसे प्रेम करते ही नहीं

अपने प्रेम को छिपाते और बचाते भी देख रही हूँ

और देखो तो सही वह मेरे सामने

ऐसा अभिनय करती है जैसे मुझे उसके

प्रेम के बारे में कुछ पता ही नहीं है

स्रोत :
  • पुस्तक : स्त्री मेरे भीतर (पृष्ठ 91)
  • रचनाकार : पवन करण
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2006

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