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ठुकराई हुई लड़कियाँ

thukrai hui laDkiyan

रेनू यादव

रेनू यादव

ठुकराई हुई लड़कियाँ

रेनू यादव

और अधिकरेनू यादव

    हँसते हुए

    बेवजह

    कुछ ज़्यादा ही ठठाकर

    हँसा करती हैं

    लाउड म्युज़िक में घुला

    देती हैं अपना अकेलापन

    महफ़िलों में बढ़-चढ़कर

    लेती हैं हिस्सा

    “सुबह सबेरे उठकर मैंने ये सब कर लिया

    अरे संईयाँ जी के साथ मैंने ब्रेकप कर लिया”

    के साथ जमकर

    अपनी कमर को गोल-गोल घुमाते हुए

    नचा देती समस्त स्मृतियों को

    कुछ ज़्यादा ही दिखाई देने लगती हैं

    मॉल, थियेटर और गोष्ठियों में

    याद करती हैं पुराने दोस्तों को

    भूल जाती हैं पुराने द्वेष को

    किसी से मिलते समय

    हहाकर मिलती हैं

    जैसे टूटती हो नदी की बाँध

    धरती को अपनी बाँहों में

    भर लेने की ख़ातिर

    खोल देती हैं अपनी

    जटाओं की गिरहें

    छिपा ले जाती हैं

    और भी बहुत कुछ

    सीप मोती नदी की काई

    सार्वजनिक ख़ुशी का नक़ाब ओढ़े

    एकांत में झर कर गिरती हैं बिस्तर पर

    जैसे पतझर में सूखे पत्ते गिरा

    करते हैं पेड़ से अलग होकर

    तकिए को सीने से चपटा कर

    सीने की आग को

    और भी कर देती हैं दुग्ध

    चद्दर के अंदर होंठ भींचकर

    भर लेती हैं गूँगी सिसकियाँ

    बाथरूम में नल के झरझराहट

    के साथ बहा देती हैं

    असंख्य नदियाँ

    तेज़ बारिस में भीगने के बहाने

    लबालब भर देती हैं पृथ्वी को

    औंधे मुँह लेटे हुए घास से

    उठकर अचानक से चल

    देती हैं शॉपिंग

    नए-नए ड्रेस, लुक्स के

    साथ इमोशन को भी

    बदलने की करती हैं कोशिश

    जी हाँ

    नहीं खाना पसंद करतीं

    स्लीपिंग पिल्स

    नहीं पीना चाहतीं ज़हर का घूँट

    नहीं बनती अब

    रोमशा, सीता या सुपर्णखा

    हर वक़्त मुड स्वीमिंग

    से गुजरते हुए

    ‘ठुकराए’ जाने के दंश को

    अंदर ही अंदर जज़्ब कर

    ‘प’ नाम की विशिष्ट संवेदना

    को अपने ठेंगे पर रखकर

    निकल जाती हैं

    अपने लक्ष्य की ओर

    पहले से भी कहीं और अधिक

    आत्मविश्वास के साथ

    आज की पढ़ी-लिखी

    ठुकराई हुई लड़कियाँ...

    स्रोत :
    • रचनाकार : रेनू यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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