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महेश आलोक

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महेश आलोक

और अधिकमहेश आलोक

    और उसकी तयशुदा तटस्थता

    मुझे उतना परेशान नहीं कर रही है जितना बुख़ार

    मैं उसकी तरफ़ पूरी नैतिकता से देखता हूँ

    इसलिए नहीं कि उसका विलक्षण सौंदर्य

    उसकी तटस्थता को स्वाभाविक तर्क दे रहा है

    या अपनी सेवाएँ अर्पित करके उसका पारदर्शी शरीर

    सेवक भाव से भर जाएगा

    या उसकी आँखों की चमक

    मेरे चेहरे की चमक से फ़िलहाल

    ज़्यादा प्रसन्न है

    और मैं उसे उठाता हूँ

    बाएँ होंठ की तरफ़

    जिह्वा के ठीक नीचे जो तालु है वहाँ

    उसे पूरी सजगता से रखता हूँ

    शायद यह

    उसके जीवन का सबसे सुखद क्षण है

    अगर मेरा अनुमान सही है तो उसका पारा चढ़ रहा है

    कहना मुश्किल है कि पारा चढ़ने का मुहावरा

    उसके प्रयोग के साथ प्रचलन में आया कि मुहावरा

    पहले से था

    यहाँ यह बहस निरर्थक है कि

    मेरे नज़दीक आने से पहले बुख़ार आने की सूचना

    उसे कैसे मिल जाती है

    जैसे यह बहस निरर्थक है

    कि उसकी तुलना समय के साथ करना

    उसके आत्यंतिक चरित्र को किस सीमा तक पकड़ना है

    तो मित्रो!

    फ़िलहाल मुझे माफ़ करें

    एक सौ तीन से कुछ ज़्यादा बुख़ार कम नहीं होता

    और नियमानुसार मुझे आराम की सख़्त ज़रूरत है

    स्रोत :
    • रचनाकार : महेश आलोक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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