नाटक के भीतर नाटक

natk ke bhitar natk

नीलेश रघुवंशी

नीलेश रघुवंशी

नाटक के भीतर नाटक

नीलेश रघुवंशी

और अधिकनीलेश रघुवंशी

     

    अमन कुन्नू के लिए

    ये बजी पहली घंटी ख़ुद को तैयार कर रहा होगा वह 
    दोहरा रहा होगा मन ही मन सारे संवाद
    दूसरी घंटी बेस्ट ऑफ लक जैसा कहना चाहती हूँ कुछ
    शायद आ गया वह विंग्स में कंपन से उसके काँप रही हूँ मैं भी 
    क्या याद होंगे उसे सारे संवाद रोंगटे खड़े हो रहे हैं मेरे 
    कैसे लेगा वह एंट्री कैसे शुरू करेगा बोलना 
    बिना बारिश के भीगेगा सुखाएगा कैसे आसमान पर अपनी क़मीज़
    सब कुछ एक साथ कुछ न होते हुए भी सब कुछ का एहसास 
    हाय जीवन से भी ज़्यादा जोखिम है अभिनय में 
    हँसी न आते हुए भी हँसेगा और एकदम से शुरू करेगा रोना 
    उसके हिस्से की सिसकी निकालूँगी मैं 
    और ये बजी तीसरी घंटी सरक रहा है परदा धीरे-धीरे 
    रोशनी के संग मंच पर है अब वो 
    दम साधकर बैठो दर्शकों मत करो आवाजाही 
    खुसर-पुसर तो बिलकुल नहीं 
    आख़िरी पंक्ति में बैठे लोगों तक पहुँचने दो उसकी आवाज़
    ये क्या नाटक शुरू हुआ फिर भी आ जा रहे हैं लोग 
    कौन है ये जो इतनी बातें किए जा रहा है  
    क्या इनका जन्म ही व्यवधान उत्पन्न करने के लिए हुआ है 
    देखो-देखो कितना मोहक लग रहा है प्रेम-दृश्य में
    कितना सुखद कितना आह्लादकारी उसे प्रेम करते देखना 
    विरह गीत गा रहा है कितनी ख़ूबसूरती से ऐसा दर्द और ऐसी टीस
    पाँव पसार रही है झनझनाहट मेरे भीतर
    ओफ्फोह ग़लत क्यू दिया उसने उड़ा दिया पूरा का पूरा सीन 
    ग़ुस्से से मत देखना कोई परदे के पीछे 
    रहे-सहे संवाद भी भूल जाएगा वह 
    अरे रे गले में पहनी मोतियों की माला टूटकर बिखर गई 
    कहीं मोतियों से फिसलकर गिर गया तो 
    नहीं कुछ नहीं हो सकता कुछ भी नहीं हो सकता अब
    शायद इसी को कहते हैं शो मस्ट गो ऑन
    ओ हो इतनी ज़ोर की तालियाँ 
    ग़लत हाथों में जाने से बचाया उसने राजसिंहासन को 
    चलो अंत भला सो सब भला 
    दर्शकों से घिरा पसीने-पसीने मुस्कुरा रहा है वह मंच पर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नीलेश रघुवंशी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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