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टेलीप्रॉमटर चला नहीं करता है नारों से

telipraumtar chala nahin karta hai naaron se

यश मालवीय

यश मालवीय

टेलीप्रॉमटर चला नहीं करता है नारों से

यश मालवीय

और अधिकयश मालवीय

    गिर पड़ती हैं अक्सर

    तारीख़ें मीनारों से

    चीख़ लौट आती है

    टकराकर दीवारों से

    कैसी भी हो क्रूर सल्तनत

    आहें भरती है

    शासक की सेना ख़ुद ही

    टूटती-बिखरती है

    राजा थक जाता,

    अपने ही अत्याचारों से

    सोने का सिंहासन,

    आँधी में हिल जाता है

    कैसा भी घमंड हो

    मिट्टी में मिल जाता है

    टेलीप्रॉमटर चला नहीं,

    करता है नारों से

    मंत्री संत्री खुलकर,

    पाँव घसीटा करते हैं

    उठे हुए सिर भी,

    अपना सिर पीटा करते हैं

    सजता है अमरीका,

    भारत के अख़बारों से

    हकलाता है वक़्त,लोग क्या

    भाषण लिखते हैं

    बढ़ी हुई दाढ़ी में फिर-फिर

    तिनके दिखते हैं

    साँठ-गाँठ करते हैं

    उजियारे अँधियारों से

    शांति-वार्ता, समझौतों की

    शर्त बोलती है

    उजली खादी पर कालिख की

    पर्त बोलती है

    चमगादड़ उड़ते हैं

    सत्ता के गलियारों से

    पूरी दुनिया में फिर जमकर

    थू-थू होती है

    भक्तिभाव वाली सड़ती-सी

    ख़ुशबू होती है

    अपने ही घर में,

    बचना होता बटमारों से।

    स्रोत :
    • रचनाकार : यश मालवीय
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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