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तीन जने

teen jane

देवी प्रसाद मिश्र

और अधिकदेवी प्रसाद मिश्र

    जहाँ दिल्ली और ग़ाज़ियाबाद की सरहदें मिलती हैं वहाँ तीन लड़कियाँ

    एक मोटरसाइकिल पर लद कर आई हैं

    अभी केवल यह तय है कि वे

    ई.डी.एम. में ‘प्यार का पंचनामा’ देखेंगी।

    उसके बाद का कार्यक्रम तय नहीं है।

    भागकर फ़िल्म देखना और हॉल में बकर-बकर

    इतना बोलना कि आस-पास वाले को फ़िल्म देखने देना

    स्वतंत्रताओं के इनसे ज़्यादा बड़े प्रतीक उनके पास नहीं हैं।

    फ़िल्म के बाद वे मॉल के अंदर घूमती हैं

    लेकिन खाती हैं बाहर

    एक ठेले पर।

    मोमो अच्छा नहीं लगता।

    अब कभी खाओगो

    एक लड़की

    कहती है।

    वे लिमका, कोला, फैंटा आपस में बाँटती हैं पीती हैं खाँसती हैं थूकती हैं और

    साथ आए लड़कवा से कहती हैं कि

    मेंटल, अगली बार ये ज़हर मत पिलाना

    अपनी अम्माँ से आम का पना बनवा के लाना।

    फिर वे दहाड़कर हँसती हैं कि जैसे वो कभी रोई हों।

    इस बीच एक लड़की के पास मोबाइल पर फ़ोन आता है भाई का।

    कि उसके दोस्त ने उसे ई.डी.एम. के सामने हरे रंग की दारू पीते देखा

    लड़की जवाब देती है—कहाँ की बात कर रहा है कमीने?

    कौन-सा चश्मा लगाता है तेरा दोस्त?

    मैं तो फ़ैक्टरी की नौकरी

    बजाके निकल रही हूँ।

    तीनों लड़कियाँ लद जाती हैं मोटरसाइकल पर।

    पता नहीं किस हरामी ने शिकायत की—एक लड़की कहती है।

    कि भगा के ले चल रे। कि जैसे किसी और ग्रह पर

    चलने के लिए कह रही हो।

    भाई का फ़ोन फिर आता है

    लड़की काट देती है और चिल्लाती है—हरामी भगा

    हरामी भगाता है और एक ट्रक के नीचे जाता है।

    लड़का नहीं रहा। लेकिन वे तीनों बच गईं—थाने के वहशीपन

    और अफ़वाहों और अस्पतालों की अमानवीयताओं के बावजूद।

    इस तरह छापामार पद्धति के तीन नमूने और इच्छाओं की

    राजनीति की तीन प्रविधियाँ और स्वतंत्रता आयत्त करने के तीन

    नायाब उदाहरण बच गए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : देवी प्रसाद मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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