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गुरु होने की स्वघोषणा

guru hone ki svghoshna

श्वेतांक सिंह

श्वेतांक सिंह

गुरु होने की स्वघोषणा

श्वेतांक सिंह

और अधिकश्वेतांक सिंह

    हम चाहते तो

    सीख सकते थे

    हरेक स्त्री और पुरुष से

    पशु पक्षी, चिरई चुरुंग

    पेड़ पौधे और गाछ वृक्ष से

    हम सीख सकते थे

    फड़फड़ाते कबूतरों

    गिद्धों और चीलों से

    हम सीख सकते थे

    बाढ़ की चढ़ती

    छुरे जैसी लहरों से

    और फिर

    फिसलती हाँफती

    नदी के

    कीचड़ में गिरने से

    हम सीख सकते थे

    बहुत कुछ महात्मा बुद्ध से

    यहाँ तक कि

    कलिंग के युद्ध से

    हम सीख सकते थे

    चट्टानों की निडर दूब से

    और बादलों में भींगकर

    डरी हुई धूप से

    हम चाहते तो

    सीख सकते थे

    बच्चों के बेहद

    आसान प्रश्नों से

    जिनका उत्तर

    हम नहीं जानते थे

    हम सीख सकते थे

    बच्चों की बकबक

    और माँ की चुप्पी से

    हम सीख सकते थे

    कुत्ते के रोने से रोना

    जिसे हम भूल गए हैं

    हम सीख सकते थे

    स्लेट पर लिखने के बाद

    मिटाना

    क्यूंकि लिखने के बाद

    लोग मिटाना भूल गए हैं

    पर

    हमने तो गुरु होने की स्वघोषणा कर दी

    और इस स्वघोषणा के बाद

    हम गुरु से महागुरु होने की

    अनंत यात्रा पर निकल पड़े हैं

    इस यात्रा में

    डेग दर डेग

    हमने सिखाना सीखा

    केवल सिखाना

    जो नहीं जानते उसे भी।

    महागुरु कुछ भी सीखता नहीं

    वह केवल सिखाता है

    उसके लिए

    चर अचर सब

    केवल उसके चेले हैं।

    गुरु होने की स्वघोषणा के बाद

    दुनिया में सिर्फ़ चेले बचते हैं

    कहीं दूसरा कोई गुरु नहीं बचता॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : श्वेतांक कुमार सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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