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तानाशाह की खोज

tanashah ki khoj

उदय प्रकाश

उदय प्रकाश

तानाशाह की खोज

उदय प्रकाश

वह अभी तक सोचता है

कि तानाशाह बिलकुल वैसा ही या

फिर उससे मिलता-जुलता ही होगा

यानी मूँछ तितली-कट, नाक के नीचे

बिल्ले-तमग़े और

भीड़ को सम्मोहित करने की वाक्-पटुता

जबकि अब होगा यह

कि वह पहले जैसा तो होगा नहीं

अगर उसने दुबारा पुरानी शक्ल और पुराने कपड़ों में

आने की कोशिश की तो

वह मसख़रा ही साबित होगा

भरी हो उसके हृदय में कितनी ही घृणा,

दिमाग़ में कितने ही ख़तरनाक इरादे

कोई भी तानाशाह ऐसा तो होता नहीं

कि वह तुरंत पहचान लिया जाए

कि लोग फ़ज़ीहत कर डालें उसकी

चिढ़ाएँ, छुछुआएँ

यहाँ तक कि मौक़े-बेमौक़े बच्चे तक पीट डालें

अब तो वह आएगा तो उसे पहचानना भी मुश्किल होगा

हो सकता है, वह कहता हुआ आए कि मैं इस

शताब्दी का सबसे ज़्यादा छला गया व्यक्ति हूँ

और वह विनोबा भावे या संत तुकाराम के बारे में

बात करे या सफ़ेद-सफ़ेद कपड़े पहनकर

सफ़ेद-सफ़ेद कबूतर उड़ाए या निश्शस्त्रीकरण की बात करे

उसका चेहरा सफ़ाचट हो, चेहरे में झुर्रियाँ हों

और वह सेना और पुलिस के होने के ही ख़िलाफ़ हो

वह भाषणों में करता हो चिड़ियों

और बच्चों से बेतहाशा प्यार

कहीं उसने बनवा दिया हो अस्पताल,

कहीं खोल दी हो प्याऊ, कहीं कोई

धर्मशाला,

कोई नृत्यकेंद्र,

कोई पुस्तकालय

संभव है

हमारे बीच के लोग हमसे बहस करें

और कहें

कि यह है प्रणाम उसकी संवेदनशीलता का

और यह भी संभव है

कि उस वक़्त उसको शांति का नोबेल पुरस्कार

दिया जा चुका हो या उसका नाम

उस सूची में सबसे ऊपर हो।

स्रोत :
  • पुस्तक : अबूतर-कबूतर (पृष्ठ 55)
  • रचनाकार : उदय प्रकाश
  • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
  • संस्करण : 1984

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