एक दिन जब सबके घर पहुँच जाएँगी मेरी चिट्ठियाँ
ek din jab sabke ghar pahunch jayengi meri chitthiyan
सोनी पांडेय
Soni Pandey
एक दिन जब सबके घर पहुँच जाएँगी मेरी चिट्ठियाँ
ek din jab sabke ghar pahunch jayengi meri chitthiyan
Soni Pandey
सोनी पांडेय
और अधिकसोनी पांडेय
एक दिन जब सबके घर पहुँच जाएँगी मेरी चिट्ठियाँ
सूरज का डाकिया लौटेगा मेरे घर
उसके हाथ में वह जवाबी चिट्ठी होगी
जिसका मुझे इंतिज़ार रहा
कितनी तहों में क़ैद
मन की बातें खुलती ही नहीं
कितनी गाँठें हैं तुम्हारे, मेरे बीच
तोड़ते-जोड़ते चलती हूँ दिन-रात
इन दिनों जब चारों तरफ़ फैली है दहशत की चादर
मैं तमाम पुरानी डायरियों के पन्ने पलटती हूँ
पुराने दिन पुरनिया आजी की बतकही-सी मोहक
मैं थाम कर उसका हाथ
उठ बैठती हूँ इन दिनों
अपने सबसे डरे समय में
मैं रोज़ लिखती हूँ एक चिट्ठी
तुम्हारे नाम
और थमा देती हूँ सूरज को
जब थक कर बैठना
देखना वह वहीं कहीं मिलेगा
अपनी गठरी में लिए मेरी चिट्ठी
पढ़ना और उठ जाना बार-बार
कुछ अलिखित चिट्ठियाँ बाँचती हैं लड़कियाँ
पूरे जीवन
सूरज बाँटता है रहती दुनिया तक...
- रचनाकार : सोनी पांडेय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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