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सूचना-क्रांति

suchana kranti

अनुवाद : मनसाराम 'चंचल'

विजय वर्मा

विजय वर्मा

सूचना-क्रांति

विजय वर्मा

और अधिकविजय वर्मा

    घटाटोप अँधेरे से जूझती लालटेन

    आजकल साँझ ढलते ही

    सोने को विवश करती है।

    करवटों पर करवटें,

    आख़िर नींद भी कितनी आए

    मानव परेशान हैं

    वैसे सपने बेशुमार हैं

    डुग्गर प्रदेश में मेरे गाँव

    सेरी पंडितां

    और

    इंटरनेट के विश्वग्राम

    के एक नगर

    सान फ्रासिस्कों के मध्य

    जो निकट संपर्क है

    आना-जाना तो नहीं

    पर मेल-मिलाप पूरा

    संसार का कोई कोना

    इस संपर्क से बाहर नहीं

    बेशक

    भूख, ग़रीबी,

    लाचारी और बीमारी

    दूर करने का

    कोई साधन है या नहीं

    पर आँकड़े पूरी तरह

    तैयार-बर-तैयार

    जहाँ-चाहो, जब चाहो

    प्राप्त कर लो

    रिश्ते

    विचित्र अंर्तजाल की

    मार झेलते

    ख़ाली कनस्तर में पड़े मेंढ़क की तरह

    तड़प रहे हैं

    संपर्क पूरा है

    आवाज़ और खनखनाहट के माध्यम से

    आने के लिए औंसियाँ हैं

    और जाने की पीड़ा है

    दूरियाँ समीपता लेकर आई हैं

    जबसे दिल पत्थर

    और भावनाएँ मशीनी हैं

    दूरी कितनी सुंदर होती है

    और समीपता कितनी घटिया

    एक बटन का अंतर

    और समीपताएँ

    यह मेरी पंडितां

    और यह सान फ्रांसिस्को

    धकधक होते

    स्वप्न टूटते

    निद्रा खुल जाती है

    तब सुबह-सवेरे

    सारी सूचना-क्रांति

    पंचायत घर के पास

    बिजली के जले ट्रांसफ़ार्मर तले

    प्रतीक्षा करती दिखलाई देती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 90)
    • संपादक : ओम गोस्वामी
    • रचनाकार : विजय वर्मा
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

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